रांची (झारखंड); 9 मई, 2020
भारत सरकार के नवीनतम मवेशी
जनगणना (2019)के अनुसार आदिवासी बाहुल्य झारखंड राज्य में
प्रमुख तौर पर खेती और पशुपालन गाव में जनजीवन के प्रगति का माध्यम है।राज्य के
आर्थिक विकास का अगर पुनरावलोकन किया जाए तो पता चलता है कि झारखंड राज्य वर्ष 2012 से 2019 के अंतराल में गोवंशीय
पशुओं से लेकर बकरी तथा सुकर पालन में देश के टॉप-टेन राज्यों की सूची में पहले
पायदान पर रहा है। इंटरनेशनल लाइवस्टोक रिसर्च
इंस्टीट्यूटआई एआरआई, केन्या, नैरोबी द्वारा वर्ष 2011 में
प्रकाशित एक अध्ययन -"पोटेंशियल फॉर लाइवलीहुड इंप्रूवमेंट फॉर लाइवस्टोक
डेवलपमेंट इन झारखंड" राष्ट्रीय परिदृश्य के अनुसार मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़, उड़ीसा के बाद झारखंड आदिवासी
प्रधान राज्य है जहां कुल 21% से अधिक आबादी
आदिवासियों की है। इसमें सबसे अधिक आबादी वाला प्रदेश झारखंड है जहां 78% आदिवासी लोग खेती और पशुपालन से आज भी सीधे तौर पर जुड़े हैं। देश के टॉप-टेन राज्यों में सबसे अधिक पशु आबादी वृद्धि के मामले में
रिकॉर्ड बनाने वाले झारखंड राज्य के पशु चिकित्सक मारे -मारे फिर रहे हैं। आज
सरकार इनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं है।
पिछले कुछ महीनों का परिदृश्य काफी चौकाने वाला है
क्योंकि झारखंड पशुचिकित्सा सेवा संघ के अनुसार राज्य के पशु चिकित्सकों की सेवा
नियमावली के अनुसार पशु चिकित्सकों से बेहतर काम लेना और उन्हें उत्साहित कर राज्य विकास की मुख्यधारा में जोड़ने के लिए सरकार का कोई रुचि नहीं है। तमाम
ऐसे अधिकारी हैं जो जिस पद पर नियुक्त हुए वह उसी पद से रिटायर भी हो रहे हैं अन्य राज्यों की भांति सेवा नियमावली के तहत या तो टाइम बाउंड
अथवा रेगुलर एसेसमेंट प्रक्रिया के तहत उनकी पदोन्नति होनी चाहिए जो नहीं हो रहा
है। पिछले दिनों ऐसा भी देखने को मिला है कि कई जिला के पशु चिकित्सा पदाधिकारियों
को उनके प्रोफेशनल ड्यूटी से अलग जिम्मेदारी दी जा रही है और पशु चिकित्सा
पदाधिकारियों की ड्यूटी थाने तथा चेक पोस्ट पर लगाई गई है। पिछले साल पशु चिकित्सा
पदाधिकारी के पद पर कृषि अधिकारी की नियुक्ति
का मामला मीडिया में चर्चा का विषय रहा। जब यह मामला तूल पकड़ने लगा तो आनन-फानन
में आदेश को वापस ले लिया गया। पूर्व मे भी विभाग के
समक्ष झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ के अध्यक्ष, डॉक्टर
बिमल कुमार हेमबरम; डाँक्टर धरमरझित विधार्थी,महामंत्री; एवं सह प्रचार मंत्री झारखण्ड
पशुचिकितसा सेवा संघ , डाँक्टर शिवानंद काशी , नोडल पदाधिकारी झारखंड राज्य जीव
जन्तु कलयाण बोड एवं सह मीडिया प्रभारी-पूरानीपेंशन हालीआंदोलन(झारखण्ड)केसाथ- समस्त कार्यकारिणी सदस्यों ने निम्न मांगें रखी है –
1.लंबित प्रोन्नति को अविलंब दिया जाए अथवा प्रोन्नति की प्रत्याशा में
रिक्त पदों को अभिलंब भरा जाए।
2.निदेशालय के पदों पर वरिष्ठ पशु चिकित्सा पदाधिकारियों को प्रोन्नति की
प्रत्याशा में पदस्थापित किया जाए।
3.केंद्र सरकार द्वारा जारी एडवाइजरी के आलोक में झारखंड पशुपालन सेवा की
पुनर्संरचना अथवा रिस्ट्रक्चरिंग यथाशीघ्र की जाए।
4.2017 बैच का वेतन वृद्धि की बाधा को शीघ्र समाप्त किया जाए।
5.लंबित प्रोन्नति/सुनिश्चित वित्तीय उन्नयन(एसीपी)/संशोधित ,सुनिश्चित एवं वित्तीय उन्नयन क (एमएसीपी) को तुरंत दिया जाए तथा भविष्य में इसे स-समय भुगतान किया
जाए।
6.विभागीय सभी नीतिगत बैठकों / निर्णयों में संघ के प्रतिनिधि की
अनिवार्य करना।
7. पशुचिकितसको को केन्द्र सरकार की भाति नान-प्रैक्टिस एलाउस एवं डीएसीपी (डायनेमिक एसयोरड कैरियर प्रोग्रेसन)
देना।
करोना लॉक डाउन के वर्तमान परिस्थिति में झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ फिर से अपनी एक नई व्यथा ले कर के सरकार के
पास पहुंचा है और उम्मीद लगा रखा है कि प्रदेश के पशु चिकित्सकों की बातों पर
सुनवाई होगी। इस संबंध में संघ की ओर से बताया गया कि पशुपालन निदेशालय अन्तर्गत
विभिन्न कार्यालयों के निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों की उनकी सेवानिवृति के
उपरांत महीनों से पद रिक्त पड़े हैं उन स्थानों को भरा जाना चाहिए।साथ ही साथ करोना
लॉक डाउन की विषम स्थिति में कार्यरत पशुचिकित्सकों/कर्मचारियों का मासिक वेतन आदि
का भुगतान विगत कई माह से बन्द हो गया है उन्हें नियमित तनख्वाह मिलनी चाहिए। इस
परिस्थिति में विभागीय कार्य संपादन एवं योजनाओं के क्रियान्वयन मे भारी गतिरोध आ गया है। राज्य में लगभग 18 निकासी एवं वययन पदाधिकारी के रिक्त पद है जिसका सीधा असर कार्यप्रणाली
पर पड़ रहा है।झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने अपने अपील में यह बात बड़े ही
स्पष्ट ढंग से रखा है और अनुरोध किया है कि तत्काल इसका निराकरण किया जाना चाहिए।
इस बीच संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी राज्य के
पशुपालन मंत्री से मिलने गए थे लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो पाई।
संस्था की ओर से जारी विज्ञप्ति में यह भी बताया गया है
कि झारखण्ड सरकार योजना-सह-वित्त विभाग के पत्राक : 1111/वित्त
दिनांक 8/4/2016 के कंडिका (1) मे वर्णित प्रावधान के अनुसार विभागीय प्रधान या विभागाध्यक्ष अधीनस्थ किसी पदाधिकारी को झारखण्ड सेवा संहिता-2016 के नियम 87 के तहत निकासी एवं व्ययन
पदाधिकारी की शक्ति प्रतयोजित ( डेलिगेट) कर सकते है। बिहार (झारखण्ड) सेवा संहिता के नियम 21 के अनुसार पशुपालन निदेशक पशुपालन विभाग के लिए विभागाध्यक्ष होते हैं
इसलिए बतौर विभागाध्यक्ष अपनी शक्तियों का नियमानुसार संबंधित विभाग के अधिकारी को
रोजमर्रा के कार्यों को गति प्रदान करने के लिए अधिकृत कर सकते हैं। संघ ने अपने
अनुरोध में यह अवगत कराया है कि जिला पशुपालन पदाधिकारी, हजारीबाग तीन महीने के उपरांत दिनांक- 31.07.2020 को सेवानिवृत होने वाले हैं यह प्रकरण सरकार को संज्ञान में लेना
चाहिएऔर तत्काल उचित कार्रवाई की जानी चाहिए। झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ के अनुसार झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ का
तीन मूल मंत्र है : पहला- सरकार के आदेश को पालन करना, दूसरा -पशु चिकित्सकों के देय मांग को स-समय दिलाना एवं तीसरा-पशु
चिकित्सा एवं पशुपालन सेवाओं के माध्यम से पशुपालकों का उन्नयन कर प्रदेश की
आर्थिक विकास में योगदान देना।
यह बता दें कि कोरोना महामारी के नियत्रंण के सिलसिले
में लॉक डाउन की स्थिति में केन्द्र व राज्य सरकार के दिशा निर्देशों के अनुपालन
में विभागीय-कर्मी एक तरफ संक्रमण के खतरों के बीच सौपे गये जिम्मेदारियों का
निर्वहन कर रहे हैं और वहीं दूसरी तरफ उन्हें वेतनादि के अभाव में आर्थिक
कठिनाईयों से जूझना पड़ रहा है। जिससे वे अपने परिवार की भरण- पोषण,बच्चों
की पढ़ाई,रोजमर्रा की खर्च तथा स्वास्थ्य की देख-रेख के
मूलभूत जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष भी कर रहे हैं। इसलिए संघ का अनुरोध है कि
पशुपालन निदेशालय सेवा-मानकों को सुनिश्चित करते हुए रिक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र
पदस्थापन कराएं तथा पशु चिकित्सा पदाधिकारियों के कल्याण पर ध्यान दें ताकि प्रदेश
के खेती-बाड़ी और पशुपालन से जुड़े किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने में पशुपालन
व्यवस्था का भरपूर लाभ प्राप्त हो।
झारखंड के ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है –
पशु पालन –
पशु चिकित्सा सेवा को कैसे नकारा जा सकता है ?
विश्व भर में फसलों से किसानों की आमदनी कराने की
व्यवस्था अपने अंति मपड़ाव पर है। फसलों को गैर कुदरती ढंग से बोने और उगाने की
तरकीब के अलावा प्राकृतिक ढंग से पौष्टिक खाद्यान्न और सब्जियां उगा कर मुनाफा
प्राप्त करना एक टेढ़ी लकीर बनती जा रही है।दूसरी तरफ कुदरत भी साथ नहीं दे रही।
फसलों के लिए मौसम और जलवायुविश्व की सबसे बड़ी चुनौती बन करके खड़े हो रहे हैं।अब
शेष सहारा पशुपालन व्यवस्था का बचा हुआ है जो भारत क्या सभी विकासशील देशों
पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने के लिए शेष बची है।
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इंटरनेशनल लाइवस्टोक रिसर्च इंस्टीट्यूटआई एआरआई, केन्या, नैरोबी द्वारा वर्ष 2011 में प्रकाशित एक अध्ययन -"पोटेंशियल फॉर लाइवलीहुड इंप्रूवमेंट
फॉर लाइवस्टोक डेवलपमेंट इन झारखंड" राष्ट्रीय परिदृश्य के अनुसार मध्य
प्रदेश ,छत्तीसगढ़, उड़ीसा
के बाद झारखंड आदिवासी प्रधान राज्य है जहां कुल 21% से अधिक आबादी आदिवासियों की है। इसमें सबसे अधिक आबादी वाला प्रदेश
झारखंड है जहां 78% आदिवासी लोग खेती और
पशुपालन से आज भी सीधे तौर पर जुड़े हैं।
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आज के समीक्षा का विषय है झारखंड की ग्रामीण
अर्थव्यवस्था के मूल मंत्र का और इस संदर्भ में यह चर्चा करना आवश्यक है कि झारखंड
में खेती किसानी जल प्रबंधन पर निर्भर काफी हद तक निर्भर है। वर्षा आधारित कृषि और
पशुधनसे जुड़े लोग आसपास के जंगलों में रहने वाले हैं और वह लोग अपनी आजीविका के
लिए इन वन उत्पादों पर आंशिक रूप से निर्भर रहते हैं। अब समस्या क्या है कि वन
क्षेत्र तेजी से घट रहा है आदिवासी समुदाय के लोगो के लिए आजीविका एक
महत्वपूर्ण स्रोत होती है वन संपदा किंतु वर्तमान परिस्थितियों में मौजूदा वन
नीतियां के वजह से आदिवासी लोग तेजी से हाशिए पर आते जा रहे हैं। लोगों को फसल उत्पादन और वानिकी के अलावा ग्रामीण परिवार पशुधन पर
निर्भर रहता हैं। अधिकांश ग्रामीण परिवार मवेशी अधिक रखते हैं। साथ साथउ नके पास
बकरियां , मुर्गी और सूअरों प्रमुख पशुधन है जो न केवल नकद आमदनी देकर आजीविका में योगदान करते हैं। वृद्ध लोगों के लिए पशुधन उनके आय का प्रमुख हिस्सा है। इसके लिए हर
परिवार प्रतिदिन 2 -4 घंटे पशुओं की देखभाल के लिए देता है। आदिवासी समुदायों के लिए पशुधन महत्वपूर्ण परंपरा और संस्कृति का हिस्सा है।वर्ष 2005–06 में कुल सकल राज्य
घरेलू उत्पाद रुपये 1471 बिलियन वर्तमान
मूल्य था। प्रति व्यक्ति जीएसडीपी 16,163 रुपए। जीएसडीपी में कृषि और पशुपालन का योगदान लगभग 20% है, जो राष्ट्रीय औसत से बहुत कम है।
सरकारी क्षेत्र में विनिर्माण क्षेत्र का योगदान लगभग 33% है और जीएसडीपी के लगभग 14% खनन और
उत्खनन का योगदान इन क्षेत्रों पर राज्य की अर्थव्यवस्था की बड़ी निर्भरता को
दर्शाता है। 2000–01 के राष्ट्रीय नमूना
सर्वेक्षण के अनुसार, राष्ट्रीय औसत 16,555 रू की तुलना में झारखंड में 8749 रू प्रति व्यक्ति आय थी। झारखंड में लगभग 43% आबादी गरीबी रेखा से नीचे है, राष्ट्रीय
औसत 26% से अधिक है और उड़ीसा (47%) (योजना आयोग का अनुमान, नमूना पंजीकरण
प्रणाली बुलेटिन 2002) को छोड़कर लगभग सभी अन्य
राज्यों की तुलना में अधिक है।देश की राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और सामाजिक-आर्थिक विकास
में महत्वपूर्ण योगदान देता है। ग्रामीण भारत में, पशुधन
किसानों की आजीविका का मुख्य स्रोत है, जहाँ 15-20 प्रतिशत से अधिक परिवार भूमिहीन हैं और लगभग 80 प्रतिशत भूमि धारक लघु ( सीमांत) किसानों की श्रेणी में आते हैं । देश भर में
बिखरी हुई आदिवासी आबादी को देश में विद्यमान राजनीतिक-प्रशासनिक संरचनाओं के
संबंध में अलग-अलग रखा गया है । भारत में, झारखंड
जनजातीय आबादी के मामले में 6 वें स्थान पर है
और लगभग 32 आदिवासी जातीय समूहों कि लोग रहते
हैं जो राज्य की आबादी का लगभग 26.34 प्रतिशत
और देश की अनुसूचित जनजाति की 8.29 प्रतिशत है।
ग्रामीण क्षेत्रों मेंआजीविकाप्रणालीमुख्यरूपसे षि, वानिकी, पशुपालन
और श्रम के संयोजन पर निर्भर है। पशुधन से
प्राप्त होने वाला है जनजातियों के आजीविका का मुख्य साधन है।आंकड़ों के अनुसार झारखंड में पशुधनतकरीबन 27% आर्थिक योगदान देता है। चूंकि जनजातियां मुख्य रूप से ग्रामीण हैं जो
कुल आबादी के 91.7 प्रतिशत लोग गांवों में निवास करती हैं। चूंकि, झारखंड में पशुधन प्रणाली जनजातियों के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा
है।जनजातीय लोगों के परिवेश के अनुसार पशुपालन में गरीबी कम करने की भरपूर क्षमता है।आंकड़े बताते हैं कि झारखंड में गरीबी का उच्चतम स्तर 39.1% है जबकि अखिल भारतीय औसत 27.5% के
मुकाबले, पशुधन पालन से आय सृजन के लिए प्रमुख
भूमिका निभा सकता है। वर्तमान परिपेक्ष में आदिवासी जनजीवन के सामाजिक-आर्थिक
स्थितियों के अनुसार पशुपालन को महत्त्व दिया जाना अत्यंत आवश्यक है।
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