ANIMAL WELFARE

Tuesday 28 July 2020

प्रतिबंधित प्लास्टर ऑफ पेरिस के मूर्तियों के निर्माण के लिए राष्ट्रीय कामधेनु आयोग इस साल गणेशोत्सव पर गोबर से गणेश मूर्ति बनाने की अपील की - आयोग अध्यक्ष डॉ वल्लभभाई कथीरिया ने कहा देसी गाय के गोबर से मूर्ति बनाएं



चेन्नई / लखनऊ ; 28 जुलाई  2020 : डॉ. आर. बी. चौधरी एवं रवि गुप्ता

प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने अपने जून माह के  'मन की बात' कार्यक्रम में इस साल गणेशोत्सव ईको-फ्रेंडली गणेश की
प्रतिमा की स्थापना एवं पूजन कर पर्यावरण संरक्षण-संवर्धन पर आधारित अभियान के द्वारा पर्यावरण प्रदूषण को कम करने का अनुरोध किया था। इस संबंध में राष्ट्रीय कामधेनु आयोग द्वारा गौ संरक्षण-संवर्धन को बढ़ावा देने के साथ-साथ गौ आधारित खेती का महत्व समझाने तथा गोमय आयुष सामग्री का उत्पादन कर पर्यावरण सुरक्षित रखने का अभियान चला चलाया जा रहा है। आयोग इस अभियान को गौ संरक्षण एवं संवर्धन के चुनौती से जुड़े इस मुद्दे को संपूर्ण देश के कोने-कोने में  इस संदेश को पहुंचाने का निर्णय लिया गया है।आयोग के अध्यक्ष डॉ. वल्लभभाई कथीरिया ने बताया कि इस प्रयास से  गौशालाये  स्वाबलंबी होंगी। इससे अधिक से अधिक युवक, महिलाये  और उद्यमियों को जोड़कर 'मेक इन इंडिया', 'स्किल इंडिया', 'स्टार्टअप इंडिया 'जैसे अभियान सफलता की ओर बढ़ेंगे। इससे देश 'आत्मनिर्भर भारत' बनेगा। 

आयोग के प्रथम अध्यक्ष, भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. वल्लभभाई कथीरिया ने समस्त गौशाला मैनेजमेंट, गौ उत्पाद व्यवसायियों, युवा एवं महिला केंद्रों, महिला स्वयं सहायता केंद्रों, स्वयं सहायता समूहों एवं सामाजिक संगठनोंसे इस वर्ष भारतीय प्रजाति की गायों के गोमय-गोबर से  गणेश  की मूर्ति के निर्माण का अनुरोध इसलिए किया है कि हर साल बनाई जाने वाली । साथ में आम जनता से भी इस वर्ष कोरोना काल में देशी गाय के गोबर से बनी श्री गणेश जी की प्रतिमा की घर में स्थापना एवं पूजन करने का आह्वान किया है। इससे घर में पवित्रता बनी रहेगी।  गणेशोत्सव की समय अवधि के बाद या तो विसर्जित करके अपने बाग़-बगीचों में पेड़-पौधों के लिए जैविक खाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं। इसे करीब के किसी भी नदी, तालाब अथवा समुद्र में विसर्जित कर सकते हैं जिसके फलस्वरूप पानी भी अशुद्ध नहीं होगा। पानी में रहने वाले जीवों का जीवन भी सुरक्षित रहेगा एवं ये बहुत से जीवों के लिए भोजन के रूप में उपयोग हो जाएगा। हम सबको पता है कि पूर्व में पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) से मूर्तियां बनती थीं उनसे जल प्रदूषण होता था।  

डॉ. कथीरिया ने बताया कि गोमय किसी भी तरह के विकिरण को सोखने की क्षमता रखता है। अतः घर में गोमय निर्मित श्री गणेश जी की प्रतिमा हमें विकिरण की कुप्रभावों से बचाने में भी सहायक होगी। प्रदूषण से बचाव के साथ गौसेवा भी होगी। गौ उत्पादों के निर्माण में लगे व्यावसायियों को आर्थिक मजबूती मिलेगी और पर्यावरण रक्षा भी होगी। युवा-महिलाओं को रोजगार मिलेगा, गौशालाएं स्वावलम्बन की दिशा में आगे बढ़ेंगी। कौशल सृजन से रोजगार भी मिलेगा। गाँव से शहर की और पलायन रुकेगा। गाँव की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और देश आत्मनिर्भर बनेगा। 
डॉ. वल्लभभाई कथीरिया  ने राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की इस पहल से इस कोरोना काल में जन समुदाय से जुड़ने का आह्वान किया। गोमय-गोबर से निर्मित श्री गणेश जी की मूर्ति की स्थापना एवं पूजन के माध्यम से जनरक्षा-राष्ट्ररक्षा-पर्यावरण रक्षा के राष्ट्रीय अभियान में तन-मन-धन से जुड़ने का विनम्र अनुरोध किया। 

यह बता दें कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मूर्ति विसर्जन के संबंध में अपनी पुराने 2010 के दिशा-निर्देशों को विभिन्न लोगों की राय जानने के आधार पर अब संशोधित कर चुका है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अब अपने नए गाइडलाइन में विशेष तौर पर प्राकृतिक रूप से मौजूद मिट्टी से मूर्ति बनाने और उन पर सिंथेटिक पेंट एवं रसायनों के बजाय प्राकृतिक रंगों के उपयोग पर जोर देने की बात कही है।यही कारण है कि राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने इस बार गणेशोत्सव पर गोमय-गोबर से गणेश मूर्ति बनाने की अपील कर पर्यावरण की रक्षा करने के साथ-साथ प्राकृतिक खेती के लिए सबसे उपयोगी पशु गाय के संरक्षण की अपील की है। चूँकि , मुर्तिकार प्रतिमाओं को रंगने के लिए प्लास्टिक पेंट, विभीन्न रंगों के लिए स्टेनर, फेब्रिक और पोस्टर आदि रंगों का प्रयोग करते हैं। मूर्ति के रंगों को विविधता देने के लिए फोरसोन पाउडर का प्रयोग होता है। ईमली के बीज के पाउडर से गम तैयार किया जाता है एवं उस गोंद से पेंट बनाते हैं। इसके साथ ही प्रतिमाओं को चमक देने के लिए बार्निस का प्रयोग होता है। कुछ प्रतिमाओं को जलरोधी बनाने के लिए डिस्टेंपर का भी प्रयोग करते हैं। एक लिए भारी मात्रा में प्रतिमाओं के विसर्जन से जल प्रदूषण होता है। 

इससे जल प्रदूषण को रोका जा सकता है प्लास्टर ऑफ पेरिस में कई तरह के रसायन होते हैं जो पानी को जहरीला बना सकते हैं।प्लास्टर ऑफ पेरिस में कई तरह के रसायन होते हैं जो पानी को जहरीला बना सकते हैं। अतः यह पानी जलीय जीवों की मृत्यु का कारण बन सकता है। इतना ही नहीं, यह दूषित पानी मनुष्य के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। खतरनाक रसायन पेरिस ऑफ प्लास्टर में सल्फर, फास्फोरस, जिप्सम, मैग्नेशियम जैसे कई रसायन होते हैं एवं मूर्ति को सजाने में इस्तेमाल होने वाले रंगों में कार्बन, लेड़ व अन्य प्रकार के रसायन होते हैं। जब हम इन रसायनों से बनी प्रतिमाओं को पानी में विसर्जित करते हैं तब इन रसायनों से सबसे पहला खतरा पानी के भीतर पनपने वाले जीवों को होता है। जब हम ऐसे पानी में सांस लेने वाली मछली को खाते हैं तब हमारा जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। फेफड़ों को नुकसान पहुंच सकता है मूर्ति को सजाने में इस्तेमाल किए जाने वाले रंग कुछ गैसों का वितरण करते हैं तथा जब हम सांस लेते हैं, इन गैसों से हमारे फेफडों को नुकसान पहुंच सकता है। पर्यावरण एवं स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए जैव वस्तुओं से बनी प्रतिमाओं का इस्तेमाल करना ही सही होगा।

Thursday 23 July 2020

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग ने जिला अधिकारियों को गोवंश सुरक्षा के निर्देश दिए - बरसात में गौशाला पशुओं के स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित किया जाए :प्रोफेसर श्यामनंदन सिंह


लखनऊ (उत्तर प्रदेश) : 23  जुलाई 2020
प्रदेश के कई  स्थानों में  भारी मानसून की वजह से  बारिश हो रही है।  बरसात में हमेशा मवेशियों के लिए  कईतरह की  कठिन समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।  सही देखभाल न होने की वजह से उनके लिए बरसाती बीमारियां का प्रकोप जानलेवा हो जाता है।  उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के  अध्यक्ष प्रोफेसर  श्याम नंदन सिंह ने  एक सर्कुलर  जारी करते हुए सभी  जिलाधिकारियों एवं  गोरक्षण समितियों से कहा है कि  गौशाला पशुओं के स्वास्थ्य सुरक्षा से लेकर गौशाला के साफ-सफाई को सुनिश्चित करें।  उन्होंने  इस संबंध में जिला प्रशासन द्वारा की गई कार्यवाही की रिपोर्ट भी मांगी है।

प्रोफेसर सिंह ने  आयोग की तरफ से जारी सर्कुलर में बताया है कि प्रदेश सरकार द्वारा गोवंश संरक्षण -संवर्धन के लिए स्थाई एवं अस्थाई गोवंश संरक्षण केंद्र / स्थल प्रदेश भर में स्थापित किए गए हैं जिनकी बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए ।ऐसे स्थलों की देख=रेख एवं मरम्मत नहीं हो पाने से पानी का जमाव तथा कीचड़ हो जाता है जो गौशाला पशुओं के लिए परेशानी ही नहीं जानलेवा बीमारी का कारण बनता है। बरसात के समय में वैसे भी खुरपका - मुंहपका  ,गलघोटू , लंगडी आदि संक्रामक रोग तेजी से फैलती हैं और इन बीमारियों के रोकथाम की व्यवस्था में लापरवाही से गौशाला पशुओं की जान चली जाती है है। इसलिए सभी संरक्षण केंद्रों ,गौशालाओं तथा पशु -आश्रय स्थलों की सफाई एवं मरम्मत के साथ-साथ टीकाकरण तथा अन्य चिकित्सा संबंधी सावधानियां सुनिश्चित किया जाए। इस कार्य में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती  जानी चाहिए।

सर्कुलर के माध्यम से उन्होंने आगे उन्होंने यह भी कहा है कि  प्रदेश में जहां कहीं भी  संबंधित जिला के परि क्षेत्र में  पशु दुर्घटना से  घायल हो जाते हैं  उन्हें तत्काल  चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जाए। सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त पशु को किसी भी हालत में पड़े नहीं रहना चाहिए। जिला प्रशासन द्वारा  हर हालत में गौशाला पशुओं के रख-रखाव एवं स्वास्थ्य संबंधी हर समस्या के निराकरण के लिए अधीनस्थ विभाग को हिदायत देकर पशुओं की सुरक्षा की जाए।


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Thursday 9 July 2020

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को आपदा राहत कोष (कोविड-19 महामारी) में 11 लाख चेक भेंट किया



लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ; 9 जुलाई 2020

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग इस समय अपने कई कार्यक्रमों को लेकर गाय के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के  लिए नई- नई पहल को लेकर सामने आ रहा है और गाय को कभी नहीं सेवानिवृत्त होने का नया प्रतिमान स्थापित करने में जुड़ा हुआ है। आयोग का मानना है कि गाय बूढी  हो या जवान वह अपने तथा अपने संतति के द्वारा अभावों  से ग्रस्त गौशाला को स्वाबलंबी बना सकती हैं जिसका प्रयोग उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग अब आरंभ कर दिया। गोधन से समृद्धि की ओर के संदेश को लेकर उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से मुलाकात की और आयोग की ओर से मुख्यमंत्री आपदा कोष में दान देकर आयोग के मनोबल और अभिनव रणनीति का सांकेतिक संदेश पहुंचाया।

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर श्याम नंदन सिंह ने आयोग की ओर से आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लखनऊ स्थित सरकारी आवास 5 - कालिदास मार्ग पर मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष (कोविड-19 महामारी)  में सहायतार्थ 11 लाख 13 हजार रुपए की धनराशि का चेक भेंट किया। इस अवसर पर आयोग के तेज-तर्रार उपाध्यक्ष , अतुल सिंह , सदस्य भोले सिंह सहित हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के लोकप्रिय  पूर्व - सांसद गंगा चरण राजपूत भी उपस्थित थे.यह बता दें कि उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग इस समय गौशालाओं के स्वाबलंबन के लक्ष्य को लेकर "आदर्श ग्राम- आदर्श गौशाला" पर कार्य कर रहा है। आयोग का विश्वास है कि वर्ष के अंत तक इसके परिणाम आने लगेंगे।

 


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Saturday 4 July 2020

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ के तीसरे दिन का आंदोलन उग्र रूप में-कल निर्धारित होगी संघर्ष की अगली रणनीति





रांची (झारखंड) ;04 जुलाई, 2020 

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ  प्रदेश के पशु चिकित्सकों के भविष्य को लेकर अत्यंत चिंतित है कि राज्य सरकार सेवा नियमावली को दरकिनार कर सेवा शर्तों के विरुद्ध कार्य कर रही है। जिसका नतीजा है कि प्रदेश भर के पशुचिकित्सक अपने भविष्य को लेकर के अत्यंत चिंतित है। पिछले कई महीनों से लगातार सरकार से अनुरोध करते आ रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है और न नियम विरूद्ध सरकार कार्य कर रहा है। झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ के अनुसार  पशुपालन विभाग में पदाधिकारियों के सेवा निवृति उपरांत निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों के पद 7 महीनों से अधिक समय से रिक्त चल रहे है। जिसके चलते कुछ जिलों  के कार्यालयों की स्थापना के अन्तर्गत आने वाले पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की वेतन निकासी बाधित हो गई है। सरकार/विभाग स्तर से की गई तात्कालिक व्यवस्था नियम विरुद्ध है, उपर से जिला प्रशासन के मनमानी के कई उदाहरण सामने आए हैं। 

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह बताया गया है कि झारखंड राज्य को छोड़ कर के शायद कोई राज्य होगा जहां पर पशु चिकित्सकों की सेवाओं का बेहतर उपयोग नहीं हो रहा और सेवा नियमावली के अनुसार अधिकारियों को समुचित सुविधा देने में कोताही बरती जा रही होगी। संघ का कहना है कि पशुपालन विभाग के विभागाध्यक्ष पशुपालन निदेशक होते है जिनके स्तर से पूरे राज्य में विभाग के कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों के वेतन सहित सभी योजनाओं का आवंटनादेश निर्गत किया जाता है। साथ ही निदेशक स्तर से रिक्त पदोें पर पदस्थापना न हो पाने की स्थिति में निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति जिला के सक्षम एवं योग्य वरीय पदाधिकारी को प्रत्यायोजन किया जाना चाहिए था जो नहीं हो रहा है।इस संबंध में संघ द्वारा अनेक पत्र एवं स्मार देने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।

संघ का कहना है कि कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के संयुक्त निदेशक-सह-संयुक्त सचिव ने प्रभावित जिलो में रिक्त पदों पर वेतनादि की निकासी करने के लिए जिला उपायुक्त को अपने स्तर से कार्रवाई करने का अप्रत्याशित पत्र प्रेषित किया गया है। जिसमे उपायुक्तो को अपने स्तर से वेतनादि की निकासी हेतु विभागीय शक्ति सक्षम पदाधिकारी को प्रत्यायोजित किया जाने का निदेश दिया गया है।इसी संदर्भ में उपायुक्त महोदय, पलामु द्वारा गैर संवर्गीय जिला मत्स्य पदाधिकारी को पशुपालन विभाग के जिला एवं प्रमण्डल स्तरीय पदों के लिए निकासी एवं व्ययन का वित्तीय शक्ति प्रत्यायोजित किया है, जो वैधानिक रुप से नियम विरुद्ध है। अंततः इन्हीं सारे मामलों को लेकर के झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ  मजबूर होकर के आंदोलन करने के लिए उतारू हुआ है।

विज्ञप्ति में एतराज करते हुए कहा गया है कि जिला मत्स्य पदाधिकारी का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड - पे 4800 है, जबकि पशुपालन पदाधिकारियों का मूल कोटि स्तर का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड पे 5400 है। उपायुक्त पलामु द्वारा उच्चतर वेतनमान के पदाधिकारी के वेतनादि की निकासी हेतु निम्न वेतनमान के पदाधिकारी को विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया जाना नियमानुकूल नही है। ठीक उसी तरह क्षेत्रीय निदेशक पशुपालन का पद प्रमण्डल स्तर का है और उपायुक्त स्तर से आदेश निर्गत करना उनकी अधिकारिता की सीमा से परे है तथा प्रख्यातित नियमो के पूर्णतः प्रतिकूल है। यह पशुपालन सेवा संवर्ग के लिए अपमान जनक है यह पशुपालन कैडर के पदाधिकारियों के मनोबल को गिराता है।

यह बता दें कि झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ का प्रदर्शन पर उतरने का मुख्य कारण यह भी है कि उपायुक्त द्वारा पशुपालन विभाग के स्थापना/कार्यालय का निकासी एवं व्ययन का आदेश अराजपत्रित पदाधिकारी को देना विभागीय अराजकता के साथ-साथ गलत परम्परा को मान्यता देना हैै। पशुपालन विभाग के पदो पर भारतीय पशुचिकित्सा परिषद/झारखण्ड पशुचिकित्सा परिषद में निबंधित पशुचिकित्सा पदाधिकारी का होना अनिवार्य है। उपायुक्त महोदय, पलामु ने भारतीय पशुचिकित्सा परिषद की अधिनियम 1984 के अध्याय 04 के नियम 30 का सीधा उलंधन किया है, तथा संवैधानिक संकट खडा कर दिया है।

संघ का मानना है कि एक अति महत्वपूर्ण तकनीकि विभाग को जानबुझ कर पंगु  बनाने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य स्तरीय झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने इन वैधानिक विसंगतियों की त्रुटि को शीघ्र दूर करने का सरकार से लगातार अनुरोध किया है, परन्तु सरकार स्तर से अब तक सार्थक प्रयास परिणत नहीं हुआ है। इन्ही विसंगतियों के विरुद्ध झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ की केन्द्रीय कमेटी ने विरोध स्वरुप  02 जुलाई 2020 से 04 जुलाई 2020 तक तीन दिनों का काला बिल्ला लगा कर अहिसात्मक एवं सांकेतिक विरोध का निर्णय लिया है। जिसके फलस्वरुप जिला ईकाई के सभी सदस्य (पशुपालन सेवा संवर्ग के पदाधिकारी) तीन दिनों तक काला बिल्ला लगाकर अपना विरोध प्रकट कर रहें है, ताकि सरकार स्तर से पशुपालन कैडर की अनदेखी न की जाए।

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अध्यक्ष ने बताया कि आज विरोध का तीसरा और अंतिम दिन है। राज्य एवं जिला के सभी पशु चिकित्सा पदाधिकारियों दवारा बढ़ चढ़ कर विरोध दर्ज किया गया और यह सेवा नियमावली के तहत अपने अधिकार को प्राप्त करने की दिशा मे सार्थक पहल है। राज्य सरकार द्वारा पशु चिकित्सा पदाधिकारियों के नियमानुसार  सेवा संबंधी मौलिक अधिकारों के खिलाफ कुछ भी होता है तो उसका विरोध किया जाएगा। उन्होंने बताया कि आज तीसरे दिन भी पूरे प्रदेश के पदाधिकारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया,खास करके  हजारीबाग, खूँटी, पलामू, पाकुड़, दुमका, साहेबगंज जमशेदपुर इत्यादि जिलों में पदाधिकारियों ने काला बिल्ला लगाकर मासिक बैठक में भाग लिया और अपना ऐतराज़ प्रकट किया।

कल दिनांक 05/07/20 रविवार को कार्यकारणी की आपात बैढ़क प्रांतिकृत पशु चिकित्सालय, चुटिया परिसर में पूर्वाह्न 11 बजे रखी गई है, जिसम़े आगे की रणनीति तय की जाएगी।


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हिमांचल प्रदेश में कब शुरू होगा गोधन योजना - जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारियों ने योजना लागू करने की मांग की


मंडी (हिमाचल) प्रदेश 4 जुलाई 2020 : एडब्ल्यू ब्यूरो

भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड से मनोनीत जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारी एवं राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित,
मदनलाल पटियाल  एवं  जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारी  सीताराम वर्मा ने हिमाचल प्रदेश सरकार से मांग की है कि छत्तीसगढ़ सरकार की तरह प्रदेश में गोधन न्याय योजना शुरू की जाए ताकि प्रदेश सरकार किसानों से वर्गो सदनों गौशालाओं से गोबर खरीद कर किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सके।  इस मुहिम के संचालक पटियाल ने बताया कि  गोबर गोमूत्र  इस समय बड़े लाभ का सौदा है।  पूरे देश भर में  गोबर गोमूत्र से लाभ कमाने के  लिए नई-नई आजमाइश की जा रही है।  इस लिए छत्तीसगढ़ राज्य जैसा प्रयास हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा  भी किया जाना चाहिए। 

पटियाल पिछले तकरीबन 2 दशकों से  भारत सरकार के जीव जंतु कल्याण बोर्ड से अधिकारी के रूप में कार्य कर रहे हैं।  उनके उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए सरकार ने  पशु पक्षियों पर होने वाले अनुसंधान  एवं परीक्षण  की देखभाल के लिए बनाई गई समिति-सीपीसीएसईए का भी जिम्मेदारी  उन्हें सौंपा हुआ है। पटियाल हिमाचल प्रदेश के महत्वपूर्ण पशुओं पर परीक्षण होने वाले  संस्थानों की  जांच कमेटी  के सदस्य की भी भूमिका  कई साल से निभा रहे हैं।  पटियाल ने हिमाचल सरकार से आग्रह किया है कि  यदि छत्तीसगढ़ राज्य जैसी व्यवस्था प्रदेश में कर दी जाए तो किसानों को  और पशु सेवकों को बहुत बड़ा लाभ होगा।  कोई भी पशु छुट्टा सड़क पर दिखाई नहीं देगा और न ही कत्लखाने जाएगा। 

उन्होंने बताया कि गोबर गोमूत्र एक ऐसी  प्राकृतिक उपाय है कि जिसमें भूमि को पोषित करने वाले सभी आवश्यक तत्व मौजूद होते है। गोबर गोमूत्र के बगैर  आज खेती-बाड़ी करना मुश्किल है इसके बिना न ही  स्वस्थ, सुरक्षित एवं पोस्टिक खाद्यान्न, फल फूल या सब्जी  पैदा  किया जा सकता है और न  ही आमदनी  पाई जा सकती।  यही कारण है कि केंद्र सरकार  जीरो बजट की खेती - ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे रही है।  ऑर्गेनिक खेती का सिद्धांत आज के परिपेक्ष में   सबसे  बेहतरीन खेती का माध्यम है  जबकि रासायनिक  उर्वरकों का प्रयोग न केवल   किसानों को हताश निराश  बनाने वाली है।  इस प्रकार गोबर की खाद किसान को  बढ़िया आमदनी देने वाला बहुत बड़ा साधन है। क्योंकि, यह  पर्यावरण और धरती के लिए भी सुरक्षा का सस्ता  संरक्षण का उपाय है।  उन्होंने कहा कि  ऐसे कार्यों को देश के सभी  रासायनिक उर्वरक  एवं कीटनाशक  उत्पादन करने वाली प्राइवेट  कंपनियां  धीरे धीरे  ऑर्गेनिक खाद का उत्पादन कर किसानों को मुहैया कराना चाहिए। 

छत्तीसगढ़ सरकार को आभार प्रकट करते हुए  उन्होंने बताया कि  गोबर की खरीदारी से  कत्लखाने जाने वाले पशुओं को बचाया जा सकेगा।  अगर ऐसा  हिमाचल प्रदेश में सरकार का निर्णय होता है तो सड़क पर कोई पशु दिखाई नहीं देगा  लोगों में मवेशियों के पालने की होड़ लग जाएगी।  इस तरह के जब भी उन्नत किस्म के  तौर तरीके  प्रकाश में आते हैं  तो सरकार की सबसे पहली जिम्मेदारी है होनी चाहिए कि  इस तरह की अनुपम योजनाओं को संचालित करने के लिए  बेहतरीन योजना बनाएं  और अनुशासनात्मक ढंग से उसका संचालन करें तभी सफलता हाथ लगेगी।  उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपने प्रदेश के किसानों को आश्वासन दिया है कि  प्रदेश भर के सभी किसानों की भागीदारी  निश्चित ही नहीं करेंगे बल्कि  सभी को लाभ प्रदान दिला कर दिखाएंगे। 
पटियाल ने बताया कि आज स्थिति यह हो गई है कि  गांव में कोई किसान  अब दुधारू पशु पालना नहीं चाहता है।  यही कारण है कि किसानों की जगह आज बड़ी बड़ी डेरिया उनका स्थान ले ली है जहां पर न  तो पशुओं का सम्मान होता है और न  ही  उनसे मिलने वाले  उत्पाद की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता है।  डेयरी फार्म का हमेशा यही इरादा होता है कि ज्यादा से ज्यादा  पशु उत्पादन और उसकी आमदनी उसे प्राप्त हो।  इसी का नतीजा है कि  पूरी दुनिया में  जानवर पर होने वाले अत्याचार  तथा अपराध  बढ़ते जा रहे हैं।  इंसान नित नए-नए खतरों से घिरता जा रहा है।  उन्होंने कहा कि अब अवसर आ गया है कि  पशुओं पर किए जाने वाले किसी प्रकार के अपराध और अत्याचार  रोका जाए क्योंकि इससे इंसान को सिवाय नुकसान होने के  फायदा नहीं हो सकता। नहीं तो करोना वायरस जैसी विपत्तियां आती रहेंगी  और मानव का सफाया कर के चली जाएंगी।  इसलिए बेहतर है कि हम प्रकृति की इज्जत करें  और प्रकृति हमारी इज्जत करें। 

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Friday 3 July 2020

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ का विरोध प्रदर्शन आज दूसरे दिन भी जारी-काली पट्टी बांधकर लोग ऑफिस गए




विरोध प्रदर्शन की  स्थिति अगर लगातार बनी रहेगी  तो प्रदेश में पशु स्वास्थ्य सेवा और उसकी गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा  

रांची (झारखंड) ; 3 जुलाई, 2020 ए197डब्ल्यू ब्यूरो

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ का विरोध प्रदर्शन और दूसरे दिन भी जारी रहा। कल के मुकाबलेप्रदेश के हर जिले में पशु चिकित्सा अधिकारियों ने काली पट्टी बांधकर विरोध किया। संघ के अध्यक्ष डॉ विमल हेंब्रम ने बताया कि इस शांतिपूर्ण विरोध के लिए नई योजनाएं बनाई जा रही है। उन्होंने ने बताया कि यह प्रदर्शन जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा शांतिपूर्ण प्रदर्शन की तरीके भी बदलते रहेंगे। प्रदेशभर के पशु चिकित्सकों में अगर दुख और निराशा है तो उतने ही अधिक आक्रोश आक्रोश भी है जो धीरे-धीरे तीव्र होता जा रहा है।डॉ हेंब्रम ने बड़ा गंभीर हो करके बताया कि यह स्थिति अगर लगातार बनी रही  तो प्रदेश में पशु स्वास्थ्य सेवा और उसकी गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।  

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ  प्रदेश के पशु चिकित्सकों के भविष्य को लेकरके अत्यंत चिंतित है कि राज्य सरकार सेवा नियमावली को दरकिनार कर सेवा शर्तों के विरुद्ध कार्य कर रही है। जिसका नतीजा है कि प्रदेश भर के पशुचिकित्सक अपने भविष्य को लेकर के अत्यंत चिंतित है। पिछले कई महीनों से लगातार सरकार से अनुरोध करते आ रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है और न नियमानुसार प्रशासन कार्य कर रहा है। झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ के अनुसार  पशुपालन विभाग में पदाधिकारियों के सेवा निवृति उपरांत निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों के पद 5  या 6  महिनों से रिक्त चल रहे है। जिसके चलते कुछ जिलो के कार्यालयों की स्थापना के अन्तर्गत आने वाले पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की वेतन निकासी बाधित हो गई है।साथ ही साथ प्रशासनिक लापरवाही के कई उदाहरण सामने आए हैं।  

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह बताया गया है कि झारखंड राज्य को छोड़ कर के शायद कोई राज्य होगा जहां पर पशु चिकित्सकों की सेवाओं का बेहतर उपयोग नहीं हो रहा और सेवा नियमावली के अनुसार अधिकारियों को समुचित सुविधा देने में कोताही बरती जा रही होगी। संघ का कहना है कि पशुपालन विभाग के विभागाध्यक्ष पशुपालन निदेशक होते है जिनके स्तर से पूरे राज्य में विभाग के कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों के वेतन सहित सभी योजनाओं का आवंटनादेश निर्गत किया जाता है। साथ ही निदेशक स्तर से रिक्त पदोें पर पदस्थापना न हो पाने की स्थिति में निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति जिला के सक्षम एवं योग्य वरीय पदाधिकारी को प्रत्यायोजन किया जाना चाहिए था जो नहीं हो रहा है।इस संबंध में संघ द्वारा अनेक स्मरण पत्र देने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। 

संघ का कहना है कि कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के संयुक्त निदेशक-सह-संयुक्त सचिव ने प्रभावित जिलो में रिक्त पदों पर वेतनादि की निकासी करने के लिए जिला उपायुक्त को अपने स्तर से कार्रवाई करने का अप्रत्याशित पत्र प्रेषित किया गया है। जिसमे उपायुक्तो को अपने स्तर से वेतनादि की निकासी हेतु विभागीय शक्ति सक्षम पदाधिकारी को प्रत्यायोजित किया जाने का निदेश दिया गया है।इसी संदर्भ में उपायुक्त महोदय, पलामु द्वारा गैर संवर्गीय जिला मत्स्य पदाधिकारी को जिला एवं प्रमण्डल स्तरीय पदों के लिए निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया गया है, जो वैधानिक रुप से नियम विरुद्ध है। इन्हीं सारे मामलों को लेकर के झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अपनी सब्र की सीमा तोड़ चुका है और मजबूर होकर के आंदोलन करने के लिए उतारू हुआ है। 

विज्ञप्ति में एतराज करते हुए कहा गया है कि जिला मत्स्य पदाधिकारी का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड - पे 4800 है, जबकि पशुपालन पदाधिकारियों का मूल कोटि स्तर का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड पे 5400 है। उपायुक्त पलामु द्वारा उच्चतर वेतनमान के पदाधिकारी के वेतनादि की निकासी हेतु निम्न वेतनमान के पदाधिकारी को विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया जाना नियमानुकूल नही है। ठीक उसी तरह क्षेत्रीय निदेशक पशुपालन का पद प्रमण्डल स्तर का है और उसके स्थापना का विभागीय शक्ति का प्रभार का आदेश निर्गत करना उनकी अधिकारिता की सीमा से परे है तथा प्रख्यातित नियमो के पूर्णतः प्रतिकूल है। यह पशुपालन सेवा संवर्ग के लिए अपमान जनक एवं कैडर के पदाधिकारियों के मनोबल को गिराता है। 

यह बता दें कि झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ का प्रदर्शन पर उतरने का मुख्य कारण यह भी है कि उपायुक्त द्वारा पशुपालन विभाग के स्थापना/कार्यालय का निकासी एवं व्ययन का आदेश अराजपत्रित पदाधिकारी को देना विभागीय अराजकता के साथ-साथ गलत परम्परा को मान्यता देना हैै। पशुपालन विभाग के पदो पर भारतीय पशुचिकित्सा परिषद/झारखण्ड पशुचिकित्सा परिषद में निबंधित पशुचिकित्सा पदाधिकारी का होना अनिवार्य है। उपायुक्त महोदय, पलामु ने भारतीय पशुचिकित्सा परिषद की अधिनियम 1984 के अध्याय 04 के नियम 30 का सीधा उलंधन किया है, तथा संवैधानिक संकट खडा कर दिया है। 

संघ का मानना है कि एक अति महत्वपूर्ण तकनीकि विभाग को जानबुझ कर पंगु  बनाने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य स्तरीय झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने इन वैधानिक विसंगतियों की त्रुटि को शीघ्र दूर करने का सरकार से लगातार अनुरोध किया है, परन्तु सरकार स्तर से अब तक सार्थक प्रयास परिणत नहीं हुआ है। इन्ही विसंगतियों के विरुद्ध झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ की केन्द्रीय कमेटी ने विरोध स्वरुप  02 जुलाई 2020 से 04 जुलाई 2020 तक तीन दिनों का काला बिल्ला लगा कर अहिसात्मक एवं सांकेतिक विरोध का निर्णय लिया है। जिसके फलस्वरुप जिला ईकाई के सभी सदस्य (पशुपालन सेवा संवर्ग के पदाधिकारी) तीन दिनों तक काला बिल्ला लगाकर अपना विरोध प्रकट कर रहें है, ताकि सरकार स्तर से पशुपालन कैडर की अनदेखी न की जाए। 

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अध्यक्ष ने बताया कि आज विरोध का दूसरा दिन है। राज्य एवं जिला के सभी पशु चिकित्सा पदाधिकारियों दवारा आंदोलन लगातार जारी है और यह सेवा नियमावली के तहत अपने अधिकार को प्राप्त करके  रहेगा। राज्य सरकार द्वारा पशु चिकित्सा पदाधिकारियों के नियमानुसार  सेवा संबंधी मौलिक अधिकारों के खिलाफ कुछ भी होता है तो उसका विरोध किया जाएगा। 

उन्होंने बताया कि आज दूसरा दिन भी पूरे प्रदेश के पदाधिकारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया,खास करके  हजारीबाग खूँटी पलामू जिला में पदाधिकारियों ने काला बिल्ला लगाकर मासिक बैठक में भाग लिया और अपना ऐतराज़ प्रकट किया।

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Thursday 2 July 2020

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ का आज से आंदोलन आरंभ -संघ ने कहा कि सेवा नियमावली के अनुसार सरकार कार्य करें - प्रदेश भर के पशु चिकित्सा पदाधिकारियों ने काली पट्टी बांधकर अपना आक्रोश व्यक्त किया



रांची (झारखंड) ; 2 जुलाई, 2020 : एडब्ल्यू ब्यूरो

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ  प्रदेश के पशु चिकित्सकों के भविष्य को लेकरके अत्यंत चिंतित है कि राज्य सरकार सेवा नियमावली को दरकिनार कर सेवा शर्तों के विरुद्ध कार्य कर रही है। जिसका नतीजा है कि प्रदेश भर के पशुचिकित्सक अपने भविष्य को लेकर के अत्यंत चिंतित है। पिछले कई महीनों से लगातार सरकार से अनुरोध करते आ रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है और न नियमानुसार प्रशासन कार्य कर रहा है। झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ के अनुसार  पशुपालन विभाग में पदाधिकारियों के सेवा निवृति उपरांत निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों के पद 5  या 6  महिनों से रिक्त चल रहे है। जिसके चलते कुछ जिलो के कार्यालयों की स्थापना के अन्तर्गत आने वाले पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की वेतन निकासी बाधित हो गई है।साथ ही साथ प्रशासनिक लापरवाही के कई उदाहरण सामने आए हैं।  

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह बताया गया है कि झारखंड राज्य को छोड़ कर के शायद कोई राज्य होगा जहां पर पशु चिकित्सकों की सेवाओं का बेहतर उपयोग नहीं हो रहा और सेवा नियमावली के अनुसार अधिकारियों को समुचित सुविधा देने में कोताही बरती जा रही होगी। संघ का कहना है कि पशुपालन विभाग के विभागाध्यक्ष पशुपालन निदेशक होते है जिनके स्तर से पूरे राज्य में विभाग के कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों के वेतन सहित सभी योजनाओं का आवंटनादेश निर्गत किया जाता है। साथ ही निदेशक स्तर से रिक्त पदोें पर पदस्थापना न हो पाने की स्थिति में निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति जिला के सक्षम एवं योग्य वरीय पदाधिकारी को प्रत्यायोजन किया जाना चाहिए था जो नहीं हो रहा है।इस संबंध में संघ द्वारा अनेक स्मरण पत्र देने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।


संघ का कहना है कि कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के संयुक्त निदेशक-सह-संयुक्त सचिव ने प्रभावित जिलो में रिक्त पदों पर वेतनादि की निकासी करने के लिए जिला उपायुक्त को अपने स्तर से कार्रवाई करने का अप्रत्याशित पत्र प्रेषित किया गया है। जिसमे उपायुक्तो को अपने स्तर से वेतनादि की निकासी हेतु विभागीय शक्ति सक्षम पदाधिकारी को प्रत्यायोजित किया जाने का निदेश दिया गया है।इसी संदर्भ में उपायुक्त महोदय, पलामु द्वारा गैर संवर्गीय जिला मत्स्य पदाधिकारी को जिला एवं प्रमण्डल स्तरीय पदों के लिए निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया गया है, जो वैधानिक रुप से नियम विरुद्ध है। इन्हीं सारे मामलों को लेकर के झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अपनी सब्र की सीमा तोड़ चुका है और मजबूर होकर के आंदोलन करने के लिए उतारू हुआ है।


विज्ञप्ति में एतराज करते हुए कहा गया है कि जिला मत्स्य पदाधिकारी का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड - पे 4800 है, जबकि पशुपालन पदाधिकारियों का मूल कोटि स्तर का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड पे 5400 है। उपायुक्त पलामु द्वारा उच्चतर वेतनमान के पदाधिकारी के वेतनादि की निकासी हेतु निम्न वेतनमान के पदाधिकारी को विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया जाना नियमानुकूल नही है। ठीक उसी तरह क्षेत्रीय निदेशक पशुपालन का पद प्रमण्डल स्तर का है और उसके स्थापना का विभागीय शक्ति का प्रभार का आदेश निर्गत करना उनकी अधिकारिता की सीमा से परे है तथा प्रख्यातित नियमो के पूर्णतः प्रतिकूल है। यह पशुपालन सेवा संवर्ग के लिए अपमान जनक एवं कैडर के पदाधिकारियों के मनोबल को गिराता है।



यह बता दें कि झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ का प्रदर्शन पर उतरने का मुख्य कारण यह भी है कि उपायुक्त द्वारा पशुपालन विभाग के स्थापना/कार्यालय का निकासी एवं व्ययन का आदेश अराजपत्रित पदाधिकारी को देना विभागीय अराजकता के साथ-साथ गलत परम्परा को मान्यता देना हैै। पशुपालन विभाग के पदो पर भारतीय पशुचिकित्सा परिषद/झारखण्ड पशुचिकित्सा परिषद में निबंधित पशुचिकित्सा पदाधिकारी का होना अनिवार्य है। उपायुक्त महोदय, पलामु ने भारतीय पशुचिकित्सा परिषद की अधिनियम 1984 के अध्याय 04 के नियम 30 का सीधा उलंधन किया है, तथा संवैधानिक संकट खडा कर दिया है। 

संघ का मानना है कि एक अति महत्वपूर्ण तकनीकि विभाग को जानबुझ कर पंगु  बनाने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य स्तरीय झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने इन वैधानिक विसंगतियों की त्रुटि को शीघ्र दूर करने का सरकार से लगातार अनुरोध किया है, परन्तु सरकार स्तर से अब तक सार्थक प्रयास परिणत नहीं हुआ है। इन्ही विसंगतियों के विरुद्ध झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ की केन्द्रीय कमेटी ने विरोध स्वरुप  02 जुलाई 2020 से 04 जुलाई 2020 तक तीन दिनों का काला बिल्ला लगा कर अहिसात्मक एवं सांकेतिक विरोध का निर्णय लिया है। जिसके फलस्वरुप जिला ईकाई के सभी सदस्य (पशुपालन सेवा संवर्ग के पदाधिकारी) तीन दिनों तक काला बिल्ला लगाकर अपना विरोध प्रकट कर रहें है, ताकि सरकार स्तर से पशुपालन कैडर की अनदेखी न की जाए। 

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अध्यक्ष ने बताया कि आज से राज्य एवं एवं जिला के सभी पशु चिकित्सा पदाधिकारियों आंदोलन आरंभ हो गया है और यह सेवा नियमावली के तहत अपने अधिकार को प्राप्त करके  रहेगा। राज्य सरकार द्वारा पशु चिकित्सा पदाधिकारियों के नियमानुसार  सेवा संबंधी मौलिक अधिकारों के खिलाफ कुछ भी होता है तो उसका विरोध किया जाएगा। उन्होंने बताया कि आज के शुभारंभ में पूरे प्रदेश के पदाधिकारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया,खास करके बोकारो में अधिकारियों ने काला बिल्ला लगाकर मासिक बैठक में भाग लिया और अपना ऐतराज़ प्रकट किया।

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