ANIMAL WELFARE

Friday 18 December 2020

कोप जंगल में वृहद गो संरक्षण केंद्र का लोकार्पण संपन्न हुआ गौ सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं-अतुल सिंह

 पडरौना गोरखपुर (उत्तर प्रदेश)

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के उपाध्यक्ष ,यशवंत सिंह उर्फ अतुल सिंह( राज्य मंत्री दर्जा प्राप्त) ने कहा कि गाय और गोवंश से बड़ा कोई धन नहीं है और  गौ सेवा से बढ़कर कोई धर्म नहीं ।  उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने गौ हत्या पर अंकुश लगाने के साथ ही उनके रख-रखाव के लिए जगह-जगह पर पशु आश्रय केंद्र खोल रही है । आयोग के उपाध्यक्ष  ने खड्डा क्षेत्र के कोप जंगल गांव में बने वृहद गोवंश संरक्षण केंद्र का लोकार्पण किया । 

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के उपाध्यक्ष अतुल सिंह नें  20 विकासखंड के कोप जंगल में 1. 20 करोड़ की लागत से बने बृहद पशु आश्रय केंद्र के लोकार्पण कार्यक्रम को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित किया ।  उन्होंने कहा कि प्रदेश के  यशस्वी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ  जी महाराज के नेतृत्व में गोवंश की सुरक्षा एवं संरक्षण का कार्य बेहतरीन ढंग से किया जाएगा  ताकि वह देश का एक उदाहरण बन सके।   आज यहां  पर  बृहद  के गौशाला स्थापना का मूल कारण यह है कि  गोवंशीय पशुओं  के लालन-पालन की  कई प्रकार की समस्याएं हैं ।  उन समस्याओं का निदान  बृहद गौशाला बनाकर के  शुरुआत की जा रही है ।बहराल,कोप जंगल के इस गौशाला मेंतकरीबन 240 जानवररखे जाने की क्षमता है ।इसको संरक्षण केंद्र परचार पशु सेठभूसा गोदाम चारा स्टोरसोलर पैनलबृहद पानी का टंकी जो 10 हजारलीटर की क्षमता का होगा उसे लगाया जाएगा।  उन्होंने कहा किकोप जंगल गांव में बने गो संरक्षण केंद्र को माडल के रूप में विकसित किया जाएगा । 

उन्होंने डीएम, एसडीएम, मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी आदि  वरिष्ठ अधिकारियों को समय-समय पर केंद्र का निरीक्षण करने का निर्देश दिया ताकि व्यवस्था सुधारी जा सके।  बताया जा रहा है कि कोप जंगल में गौशाला के लिए 64 एकड़ जमीन सुनिश्चित की गई है  लेकिन काफी जमीन पर  नाजायज कब्जा है ।  अतुल सिंह जी की निगाह इस पर पड़ गई है और देर - सवेर वह इसका निराकरण अवश्य ढूंढ लेंगे ।  कोप जंगल  के गौशाला केंद्र पर पहुंचने के लिए  सड़क बहुत खराब है ।  उसे बनाने परावेट कर कर्मचारियों के मानदेय आदि के भुगतान करवाने का आश्वासन दिया ।  इस कार्यक्रम में  ग्रामीणों, गौशाला प्रतिनिधियों  एवं जनपद प्रशासन के कई आला अफसर  मौजूद थे। 

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Tuesday 6 October 2020

जीव जंतु कल्याण अधिकारी मदनलाल पटियाल ने हिमाचल की गौसेवा संबंधी चुनौतियों से अवगत कराया राष्ट्रीय कामधेनु आयोग को - कहा इस बार दिवाली में गोबर से बने दीए ही जलेंगे


6 अक्टूबर 2020 , मंडी (हिमाचल प्रदेश) : डॉ. आर. बी. चौधरी 

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग  इस समय आत्मनिर्भर भारत  अभियान के तहत गौशालाओं तथा पंजरापोलों के  स्वाबलंबन के लिए  जन जागृति कर रहा है। आयोग आगामी दीपावली के  शुभ अवसर पर  गोबर से बनाए गए  दीए जलाने का  अनुरोध कर रहा है। अभियान को सफल बनाने के लिए आयोग के अध्यक्ष  डॉक्टर वल्लभभाई कथीरिया ने बेबनार  बैठक में  हिमाचल प्रदेश के  गौशाला प्रतिनिधियों एवं पशु प्रेमियों को संबोधित करते हुए कहा कि  गोबर से बनाए गए दीए  उपयोग करने से  गाय तथा गोबर  का बेहतर उपयोग होगा  और इससे  गौशालाओं की आमदनी बढ़ेगी।  साथ ही साथ  युवा उद्यमियों को  काम का अवसर मिलेगा।  इस अवसर पर  भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के मानद  जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारी  मदनलाल पटियाल  ने हिमाचल प्रदेश की ओर से  आयोग अध्यक्ष डॉक्टर कथीरिया का  अभिनंदन किया  और हिमाचल प्रदेश की गौशालाओं द्वारा दिवाली के शुभ अवसर पर गोबर से दीए बनाने की  मुहिम को  आगे बढ़ाने का वादा किया। 

आयोग के अध्यक्ष डॉक्टर कथीरिया अपने संबोधन में  गोबर के उपयोगिता  के कई वैज्ञानिक एवं आर्थिक  पहलू पर   कई रोचक जानकारियां दी।  उन्होंने कहा कि  अभी पिछले महीने में गणेश चतुर्थी के अवसर पर पूरे देश भर में गोबर से गणेश मूर्ति बनाकर  पर्यावरण को सुरक्षित रखने  तथा गौशालाओं की आमदनी  बढ़ाने की  एक मुहिम चलाई गई थी जो अत्यंत सफल रही है।  इस बार दिवाली में गोबर से बने दीए  बनाकर  भारत के  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के  आवाहन  आत्मनिर्भर भारत को   घर घर तक पहुंचाया जाएगा।  आयोग यह चाहता है कि  गाय और गोबर का महत्व बड़े ताकि किसानों की आमदनी के साथ-साथ  स्वास्थ्य, पौष्टिक एवं  जहर से मुक्त  खाद्यान्न प्राप्त किया जा सके।  उन्होंने बताया कि इस बार दिवाली में  11 करोड़ दिए बनाने का  लक्ष्य रखा गया है  जबकि विभिन्न प्रदेशों मैं काम कर रहे  पशु प्रेमियों की जोश से ऐसा लगता है कि  यह संख्या कई गुने तक पहुंच जाएगा। 

हिमाचल प्रदेश के वरिष्ठ गौशाला प्रतिनिधि एवं भारत सरकार के मानद  अधिकारी मदनलाल पटियाल ने अपना पक्ष रखते हुए बताया कि हिमाचल प्रदेश की गौ पशुओं की स्थानीय नस्लें आज भी अत्यंत लोकप्रिय हैं और उनके दूध में औषधीय गुण पाए जाते हैं। हिमाचल प्रदेश की गौशालाओं को प्रदेश सरकार द्वारा प्रति पशु चारे के भुगतान की बात कही गई है लेकिन अभी भरण पोषण संबंधी सुविधा गौशालाओं तक नहीं पहुंच पाई हैं। सभी लोग बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वह वर्तमान में मंडी एचपीसीएसए जुड़े हुए दो गौशालाओं की व्यवस्था देख रहे हैं जिसकी व्यवस्था प्रबंधन एवं देखभाल में जिलाधिकारी एवं पशुपालन विभाग का महत्वपूर्ण योगदान है। पटियाल ने आयोग अध्यक्ष से हिमाचल प्रदेश के गौ संरक्षण- संवर्धन की व्यवस्था मैं सहयोग करने की अपील की और आयोग द्वारा किसी भी जिम्मेदारी दिए जाने पर उसके बेहतर निर्वाहन का वादा किया। साथ ही साथ पटियाल ने बताया कि उन्होंने राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष को

हिमाचल प्रदेश आने का कई बार आग्रह किया है और भरोसा है हिमाचल प्रदेश में गौ संरक्षण नीति निर्धारण और कुशल संचालन में अपना मार्गदर्शन देंगे। राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की इस बैठक में हिमाचल प्रदेश के कई प्रतिनिधियों ने भाग लिया। गौ सेवा आयोग हिमाचल प्रदेश के उपाध्यक्ष अशोक शर्मा भी उपस्थित हुए और उन्होंने आयोग से अपील किया कि गोबर से लट्ठा बनाने की मैया कराने में मदद करनी चाहिए ताकि गोबर के उपयोग संबंधी नई उपलब्धियां हासिल की जा सके। उन्होंने माना कि गौशालाओं के स्वाबलंबन के लिए स्वयं सामने आना होगा और स्वयं स्वावलंबी बनने के लिए हर चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। 

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Tuesday 8 September 2020

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने मीडिया कर्मियों की बैठक आयोजित की - " चलो गाय की ओर, चलो गांव की ओर तथा चलो प्रकृति की ओर " :डॉ. बल्लभभाई कथीरिया


8 सितंबर 2020, नई दिल्ली : डॉ. आर. बी. चौधरी

भारत सरकार द्वारा स्थापित राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के तकरीबन डेढ़ साल हो गए। आयोग के प्रथम अध्यक्ष डॉ. बल्लभभाई कथीरिया द्वारा राष्ट्रीय गौ -संवर्धन में संरक्षण भूमिका पर आयोजित मीडिया कर्मियों की पहली वेवनार मीटिंग में  देश भर के सौ से अधिक  विशेषज्ञों एवं मीडिया कर्मियों ने भाग लिया। मीटिंग की शुरुआत आयोग के अध्यक्ष डॉक्टर कथीरिया के संबोधन से आरंभ हुआ जिसमें उन्होंने गाय और गांव के पारस्परिक संबंधों और उसके  महत्व बताते हुए राष्ट्रीय विकास के योगदान की चर्चा की। उन्होंने बताया कि आज यह बहुत बड़ी जरूरत है कि चलो गाय की ओर, चलो गांव की ओर तथा चलो प्रकृति की ओर  चलें लेकिन यह तब तक संभव नहीं हो सकता जब तक लोग मन से स्वीकार नहीं करते। इस कार्य में देश के मीडिया का बहुत बड़ा योगदान हो सकता है। 

राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के प्रथम अध्यक्ष डॉ. बल्लभभाई कथीरिया पेशे से कैंसर सर्जन है जिनका जीवन एक सर्जन से ज्यादा समाज सेवक के  लिए एक  सांसद ,केंद्रीय मंत्री और गुजरात गोसेवा एवं गोचर विकास बोर्ड के अध्यक्ष आदि रूप में उल्लेखनीय सेवाएं कर चुके हैं। 21 फरवरी 2019 को स्थापित राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के बैनर के तले बतौर पहले  अध्यक्ष के रूप में देशभर के संस्थानों ,गौशालाओं ,अनुसंधान केंद्रों एवं प्रगतिशील प्राकृतिक खेती के किसानों से मिलकर इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पुरातन काल से स्थापित ग्रामीण समृद्धि की मूल आधार गाय कहीं गांव से गायब हो रही है और उसे फिर से प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए। इस सिलसिले में आयोजित आज की मीडिया कर्मियों की वेवनार की पहली मीटिंग का मुख्य फोकस था कि गाय के प्रति दूध उत्पादन की महत्ता के अलावा गाय के द्वारा उत्पादित प्रत्येक उत्पाद के महत्व को समझना होगा। इस विषय को उन्होंने उसे बाजार में उतारने की बात कही और अपने संवाद में बताया कि गोबर गोमूत्र से गृह उद्योग चालू हो सकते हैं। गोबर गोमूत्र से उर्वरक ,कीटनाशक ,सीएनजी,ईंधन के रूप में गोबर के लट्ठे,औषधियां,सैनिटाइजर,कागज,दीपक, मूर्तियां क्या क्या नहीं बनाई जा सकती हैं। इन्हें आज बाजार देने की जरूरत है जिसमें अपार आमदनी की संभावनाएं हैं। गांव आधारित सभी सामग्री पूरी तरह से इको फ्रेंडली है। इसे आगे बढ़ाने के लिए मीडिया ही लोगों के माइंड सेट को बदल सकती है और इससे सिर्फ  देश का पर्यावरण ही नहीं सुधरेगा बल्कि ग्रामीण बेरोजगारी दूर होगी और भारत के प्रधानमंत्री के आवाहन "आत्मनिर्भर भारत" का सपना भी पूरा होगा। 

आज राष्ट्रीय मीडिया को संबोधित करते हुए डॉ. कथीरिया ने यह बताया कि राष्ट्रीय कामधेनु आयोग सिर्फ पॉलिसी मेकिंग इंस्टिट्यूशन तक ही नहीं सीमित है बल्कि गांव आधारित आजीविका और ग्रामीण अर्थ व्यवस्था सुदृढ़ करने लिए निरंतर जिम्मेदार है। इस कार्य को कोऑपरेटिव सिस्टम और पब्लिक पार्टिसिपेटरी सिस्टम के माध्यम से विकसित कर लोगों को जोड़ने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि इस बार दिवाली के अवसर पर गोबर से  11 करोड़ दीए बनाने का लक्ष्य रखा गया है ताकि गोबर जैसे उत्पाद की उपयोगिता बढे , लोगों को रोजगार मिले और हमारा पर्यावरण भी सुरक्षित रहे। इस दिशा में किए जा रहे हैं कई सफलताओं का जिक्र किया और कहा कि गोमय  वस्तुओं के निर्माण और बिक्री से एंटरप्रेन्योरशिप को एक नई आशा की किरण मिली है। रासायनिक खादों के आयात एवं उपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि गोबर से प्राप्त होने वाले ऑर्गेनिक खाद की उपयोगिता नहीं के बराबर है इसलिए इसके उपयोग को बढ़ाकर रासायनिक खाद के उपयोग से होने वाले जमीन को जहरीला बनाने से षड्यंत्र को रोका जा सकता है। इस विषय को एक व्यापक अभियान चलाने की जरूरत है जिसमें मीडिया की बहुत बड़ी भूमिका है। डॉ. कथीरिया ने पारंपरिक पशु चलित मशीनों के महत्व को बताने से लेकर गौ संरक्षण-संवर्धन के लिए नई विधाएं जैसे काऊ टूरिज्म,कामधेनु विश्वविद्यालय,विभिन्न प्रशिक्षण संस्थानों तथा पशुपालन विभाग के मानव संसाधन अध्ययन-प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में समृद्धि गाय और गांव के पारस्परिक संबंधों पर पाठ्यक्रम जोड़ने की भी बात कही। 

मीडिया कर्मियों की इस बैठक में पंडित दीन दयाल उपाध्याय पशु विज्ञान एवं पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.के. एम. एल. पाठक ने देसी गाय के आर्थिक महत्त्व की वैज्ञानिक विवेचना करते हुए बताया कि देसी गाय शंकर गायों की तुलना में हमारे लिए काफी उपयुक्त है और इसके लालन-पालन पर बहुत कम खर्च आता है। उन्होंने कहा कि देसी गाय का उत्पादन तुलनात्मक रूप से संकर नस्ल से अधिक होता है।  इस बात को मीडिया कर्मियों के माध्यम से हर आदमी तक ले जाने की जरूरत है। मीटिंग में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अजीत महापात्रा ने गौ संवर्धन-संरक्षण के कई व्यवहारिक उपाय बताएं तथा इस विषय को आध्यात्मिक चेतना से जोड़ने पर बल  दिया। उन्होंने मीडिया की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि मीडिया आज संचार माध्यम का एक सशक्त माध्यम है। भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के पूर्व मीडिया प्रभारी एवं प्रधान संपादक डॉ आर बी चौधरी ने कहा कि केंद्र सरकार के कई प्रतिष्ठानों एवं आयोगों की भांति यदि राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के अध्यक्ष डॉ. कथीरिया मीडिया द्वारा कर्मियों की एक प्रकोष्ठ बनाकर उन्हें आयोग से जोड़ना चाहिए। 

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Sunday 30 August 2020

गुजरात की गौशालाओं के विकास हेतु 100 करोड़ रुपए का अनुदान - भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य एवं राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता स्वयंसेवी संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी-गिरीश जयंतीलाल शाह ने मुख्यमंत्री को बधाई दिया

 


मुंबई (महाराष्ट्र):डॉ. आर.बी.चौधरी  

गौ सेवा एवं गौ संवर्धन के लिए समर्पित गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री विजय भाई रुपाणी ने प्रदेश के गौशालाओं एवं पंजरापोलों के लिए 100 करोड़ के अनुदान का प्रावधान किया है। इस संबंध में भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य एवं राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता स्वयंसेवी संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी गिरीश जयंतीलाल शाह ने गुजरात के मुख्यमंत्री को आभार प्रकट करते हुए इसे आदर्श कार्य कहा है।

समस्त महाजन के मैनेजिंग ट्रस्टी, गिरीश जयंतीलाल शाह ने बताया कि गुजरात के मुख्यमंत्री , विजयभाई रूपानी जी और नायब मुख्यमंत्री नीतिनभाई पटेल का 2020 के बजट में 100 करोड़ रुपए का प्रावधान गुजरात की पांजरापोल के विकास के लिए घोषित किया। इसलिए गुजरात राज्य के सभी पांजरापोल के ट्रस्टी की ज़िम्मेदारी होती है। शाह ने अनुरोध किया है कि सरकार के नीति नियम मुताबिक़ काग़जात प्रस्तुत करके रक़म उपयोग में ले लेना चाहिए। आगे उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि गुजरात के सभी पांजरापोल के ट्रस्टीमंडल तुरंत कार्यवाही करे और इस योजना को सम्पूर्ण सफलता प्रदान करे ।

उन्होंने यह भी कहा कि अन्य राज्यों के सभी पांजरापोल के ट्रस्टी अपने स्थानिक सांसद महोदय और स्थानिक विधानस सभा के माध्यम से या अपने राज्य के मुख्यमंत्री और वीत मंत्री से मिलकर आपके राज्य में भी इस प्रकार की योजना लागू क़राने की कोशिश करे। केंद्र सरकार को भी ओर्गानिक फ़ार्मिंग को बढ़ावा देना हो और पशुपालक को वाक़ई में मदद करनी हो तो गाँव गाँव के गोचर विकास और भारत की सभी पांजरापोल के विकास का मास्टरप्लान अमल करना होगा।

गुजरात में गौ सेवा एवं गौ संवर्धन के बारे में बहुत अधिक जागृति है। विश्व में गुजरात राज्य में स्थित पालीताना एक ऐसा कस्बा है जो शुद्ध शाकाहारी है। गुजरात में कार्यरत गौ सेवा एवं गोचर विकास बोर्ड कि कई उपलब्धियां देश के अन्य प्रदेशों के लिए उदाहरण है। लॉकडाउन के दौरान गुजरात के मुख्यमंत्री ने गौ सेवा के लिए यह अनुदान स्वीकृत  कर सबका मन मोह लिया। भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के सदस्य एवं समस्त महाजन संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी गिरीश  जयंतीलाल शाह ने मुख्यमंत्री के निर्णय  के लिए बधाई दिया है और अनुरोध किया है कि गुजरात में इसी प्रकार से पशु कल्याण की सेवाएं करते रहे।

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Thursday 13 August 2020

भारत में पशु कल्याण पर जागरूकता एवं जनसंचार

Jump to navigationJump to searchभारत में पशु कल्याण पर पत्रकारिता एवं जनसंचार का कार्य वर्ष 1980 के दशक के दौरान शुरू हुआ। इस दिशा में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के लोकप्रिय प्रकाशन सेवाग्राम जर्नल्स प्राइवेट लिमिटेड द्वारा हिंदी में पशुपालन एवं पशु चिकित्सा विज्ञान पर प्रकाशित पत्रिका पशुपालक गाइड के प्रकाशन से आरंभ किया गया। जिसमें , पशु कल्याण तथा जानवरों के अधिकार के मुद्दों पर शामिल किए गए और बाद में यह प्रकाशन नए अनुसंधान और तकनीक पर आधारित विषय के प्रकाशन को अत्यधिक प्राथमिकता दिया। इसी क्रम में वर्ष 1986 से हरियाणा राज्य में स्थित करनाल से भारतीय कृषि अनुसन्धान पत्रिका के पहले संस्करण की शुरुआत एग्रीकल्चरल रिसर्च कम्युनिकेशन सेंटर द्वारा वर्ष 1986 से किया गया जिसमें कृषि और पशु विज्ञान अनुसंधान के साथ-साथ पशु कल्याण भी शामिल किए गए ।

वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से पशु पोषण पर पहली शोध पत्रिका -पशु पोषण अनुसंधान दर्शन(हिंदी त्रैमासिक) का प्रकाशन डॉ. आर. बी. चौधरी द्वारा आरंभ किया गया।   इस दिशा में सड़क पर छोड़े गए जानवरों की रक्षा करने और उनके देखभाल संबंधी सूचना प्रसारण के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए। पशु कल्याण पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से जमीनी कार्यकर्ताओं को जागरूक करने का कार्य किया [1] [2]। और पशु कल्याण पत्रकारिता और संचार में उत्कृष्ट योगदान के लिए कई बार सम्मानित किया गया। डॉ. चौधरी भारत सरकार के अधीन कार्यरत भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के प्रकाशन एनिमल सिटीजन(अंग्रेजी त्रैमासिक),जीव सारथी (हिंदी त्रैमासिक) एवं हिंदी अंग्रेजी में प्रकाशित होने वाले मासिक समाचार पत्रक एडब्ल्यूबीआई न्यूजलेटर लगातार दो दशकों तक संपादन किया[1]।

डॉक्टर चौधरी गोविंद बल्लभ पंत कृषि और प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंतनगर से पशु पोषण में स्नातकोत्तर की डिग्री के दौरान सूखे एवं पोषण विहीन चारे को फफूंद का उपयोग करके गोवंशीय पशुओं के लिए सबसे सस्ता और पौष्टिक आहार का अनुसंधान कार्य किया । इसी प्रकार डॉ चौधरी के डॉक्टरल अध्ययन के दौरान पता लगाया कि गायों के दूध निकालनें  के लिए ऑक्सीटोसिन हार्मोन द्वारा दूध उतारने दुरुपयोग किया जाता था जो पशुओं के स्वास्थ्य के लिए घातक होता है और दूध भी पीने लायक नहीं रह जाता है। वर्ष वर्ष 2011 में डॉ चौधरी के डॉक्टरल  रिसर्च से प्राप्त जानकारी के आधार पर भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड  द्वारा ड्रग कंट्रोलर आफ इंडिया के सामने रखा गया और ऑक्सीटोसिन के बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया गया। [3] [4 ]।

डॉ चौधरी वर्ष 1994 में देश में पशु कल्याण के बेहतर प्रचार प्रसार हेतु रॉयल सोसाइटी फॉर क्रुएल्टी टू एनिमल्स, यूके (1994 -1996) द्वारा प्रायोजित पशु कल्याण पर प्रशिक्षण शिविर के आयोजन के लिए बतौर  पशु कल्याण शिक्षा अधिकारी के रूप में कार्य किया और वर्ष 1994 में भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड में अधिकारी नियुक्त किये गए । इसी प्रकार भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड के पत्रिकाओं के सम्पादन कार्य (1997-2020) किया। इस बीच सरकार की नीति के अनुसार डॉ. चौधरी मिडिया हेड के रुप में इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया में भी योगदान दिया।  सहायक सचिव (2007-2010) और संकाय प्रभारी- राष्ट्रीय पशु कल्याण संस्थान (2012) के रूप में अतिरिक्त जिम्मेदारी भी सौंपी गई।  डॉ चौधरी वर्ष 2020 में उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग द्वारा  सलाहकार नियुक्त किया उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग  के साथ राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता एनजीओ - प्रशिक्षण, मीडिया और शिक्षा के लिए "समस्त महाजन" के सलाहकार का भी सम्मान प्रदान किया गया [1][2][3]।

पशु कल्याण अनुसंधान, शिक्षा और संचार के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए डॉ. चौधरी को कृषि विज्ञान परिषद पुरस्कार (1982), ऋषभ पुरस्कार (2001), पशु कल्याण फैलोशिप पुरस्कार (2004) और वर्ष 2013 में न्यूज पेपर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा सम्मानित किया गया। पशु चिकित्सा शिक्षा एवं अनुसंधान पर प्रकाशित होने वाली  पत्रिका पशुधन प्रहरी ने  वर्ष 2020 में  डॉ चौधरी को  पशु कल्याण के दिशा में  शिक्षा , प्रचार प्रसार एवं अनुसंधान  के उल्लेखनीय योगदान के लिए लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रदान किया है। पशु कल्याण  के नवीनतम जानकारियों के  प्रचार- प्रसार के लिए "एनिमल वेलफेयर" नामक  भारत की अग्रणी हिंदी मासिक पत्रिका का  प्रकाशन एवं संपादन कर रहे हैं।

संदर्भ:

https://hi.wikipedia.org/s/igt7 

Monday 10 August 2020

समस्त महाजन अयोध्या में जीव- दया केंद्र स्थापित करेगा -अयोध्या की पवित्र भूमि अब भारत की एक नई इतिहास बन गई : गिरीश जयंतीलाल शाह

10  अगस्त 2020; मुंबई (महाराष्ट्र) : डॉक्टर आर बी चौधरी

अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर के निर्माण के लिए ऐतिहासिक भूमि पूजन सम्पन्न होते ही  सिर्फ  भारत नहीं समूचे विश्व में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। समूची दुनिया में यह माना जाता है कि रामायण की कथा में  वर्णित  भगवान  श्रीराम और सीता  की भूमिका  दुनिया को एक ऐसे आदर्शमय  जीवन की सीख देता है  जहां  सियाराम की  भूमिका  एक ऐसे आदर्श  पुरुष के रूप में है जिसके जीवन में  राजधर्म से बड़ा कुछ नहीं  है।  समस्त महाजन के  मैनेजिंग ट्रस्टी  गिरीश  जयंतीलाल  शाह  ने बताया कि अयोध्या की पवित्र  सभी धर्मों के लिए एक इतिहास बन गई  जहां से लोग अब  सामाजिक समरसता एवं  सर्व धर्म की  सीख प्राप्त करेंगे। समस्त महाजन इस आयोजन के बाद यह निर्णय लिया है की  अयोध्या में  यात्री निवास एवं जीव  दया केंद्र  स्थापित करेगा।

उन्होंने बताया कि  अयोध्या व नगरी है जहां  जैन धर्म के प्रथम जिनेश्वर आदेश्वर दादा के ३ कल्याणक , द्वितीय जिनेश्वर अजितनाथ दादा के 4  कल्याणक ,चतुर्थ जिनेश्वर अभिनंदनस्वामी दादा के 4 कल्याणक ,पाँचवे जिनेश्वर सुमतिनाथ स्वामी के 4 कल्याणक,चौदावे जिनेश्वर अनंतनाथ स्वामी के 4 कल्याणक अर्थात ऐसे कुल 19 कल्याणक इस भूमि पर पैदा हुए  और राजा ऋषभ ने हसी मसी- कृषि की संस्कृति का ज्ञान यहीं से विश्व को दिया। साथ ही पुरुषोंकी 72 कला , स्त्री की 64 कला , 100 शिल्प , गणित ,लिपि  का उद्भव हुआ। इस सब का ज्ञान राजा ऋषभ ने इसी अयोध्या नगरी से विश्व कल्याण की भावना के साथ प्रकाशित किया  था। ऋषभदेव के सुपुत्र भरत चक्रवर्ती ने पूरे विश्व के विजेता बनकर अयोध्या में राजधानी बसायी  और सत्यवादी राजा हरीश चंद की यह जन्मभूमि है।  राजा * राम * ने रामराज्य की स्थापना यही की।  सरयू नदी में समाधि लेते वक्त हनुमानजी  को अयोध्या सोंप के गए।

आज राम मंदिर निर्माण के पावन अवसर पर विश्व के सभी सज्जनो को शुभ कामना।  जैन समाज के लिए इस भूमि का ऐतिहासिक महत्व है। अयोध्या में 10 से 20 एकर भूमि ख़रीदकर तमाम यात्री के लिए व्यवस्था का आयोजन,सभी के लिए स्वास्थ्य भोजनशाला, अबोल जीवों के लिए पांजरापोल स्थापित करेगा।  साथ ही साथ अयोध्या के  बंदरों के लिए हनुमान वाटिका बनाएगा।  शाह ने बताया कि इस तरह के क्रियाकलाप अयोध्या ही नहीं  सभी धार्मिक स्थलों  पर  एक बहुत बड़ी आवश्यकता बन गई है।  इसलिए  समस्त महाजन  की आकांक्षा है कि इकाइयों की स्थापना कर जीव - जंतुओं की सेवा करेगा। 



समस्त महाजन के मैनेजिंग ट्रस्टी
 शाह ने यह भी बताया कि  इस तरह की कार्य योजना पर पहले से विचार किया जा रहा था  और इस संबंध में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से विचार विमर्श किया जा चुका था।  गत वर्ष  जुलाई महीने में  जीव जंतु कल्याण पर एक प्रशिक्षण कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।  इस विषय पर आत्ममंथन की शुरुआत वाराणसी से से हुई थी जहां पर  एक प्रांतीय सम्मेलन सम्मेलन आयोजित हुआ और  उत्तर प्रदेश में जीव दया के कार्यों को प्रसारित करने के लिए विचार विमर्श किया गया था।

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Tuesday 28 July 2020

प्रतिबंधित प्लास्टर ऑफ पेरिस के मूर्तियों के निर्माण के लिए राष्ट्रीय कामधेनु आयोग इस साल गणेशोत्सव पर गोबर से गणेश मूर्ति बनाने की अपील की - आयोग अध्यक्ष डॉ वल्लभभाई कथीरिया ने कहा देसी गाय के गोबर से मूर्ति बनाएं



चेन्नई / लखनऊ ; 28 जुलाई  2020 : डॉ. आर. बी. चौधरी एवं रवि गुप्ता

प्रधानमंत्री  नरेंद्र मोदी ने अपने जून माह के  'मन की बात' कार्यक्रम में इस साल गणेशोत्सव ईको-फ्रेंडली गणेश की
प्रतिमा की स्थापना एवं पूजन कर पर्यावरण संरक्षण-संवर्धन पर आधारित अभियान के द्वारा पर्यावरण प्रदूषण को कम करने का अनुरोध किया था। इस संबंध में राष्ट्रीय कामधेनु आयोग द्वारा गौ संरक्षण-संवर्धन को बढ़ावा देने के साथ-साथ गौ आधारित खेती का महत्व समझाने तथा गोमय आयुष सामग्री का उत्पादन कर पर्यावरण सुरक्षित रखने का अभियान चला चलाया जा रहा है। आयोग इस अभियान को गौ संरक्षण एवं संवर्धन के चुनौती से जुड़े इस मुद्दे को संपूर्ण देश के कोने-कोने में  इस संदेश को पहुंचाने का निर्णय लिया गया है।आयोग के अध्यक्ष डॉ. वल्लभभाई कथीरिया ने बताया कि इस प्रयास से  गौशालाये  स्वाबलंबी होंगी। इससे अधिक से अधिक युवक, महिलाये  और उद्यमियों को जोड़कर 'मेक इन इंडिया', 'स्किल इंडिया', 'स्टार्टअप इंडिया 'जैसे अभियान सफलता की ओर बढ़ेंगे। इससे देश 'आत्मनिर्भर भारत' बनेगा। 

आयोग के प्रथम अध्यक्ष, भारत सरकार के पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ. वल्लभभाई कथीरिया ने समस्त गौशाला मैनेजमेंट, गौ उत्पाद व्यवसायियों, युवा एवं महिला केंद्रों, महिला स्वयं सहायता केंद्रों, स्वयं सहायता समूहों एवं सामाजिक संगठनोंसे इस वर्ष भारतीय प्रजाति की गायों के गोमय-गोबर से  गणेश  की मूर्ति के निर्माण का अनुरोध इसलिए किया है कि हर साल बनाई जाने वाली । साथ में आम जनता से भी इस वर्ष कोरोना काल में देशी गाय के गोबर से बनी श्री गणेश जी की प्रतिमा की घर में स्थापना एवं पूजन करने का आह्वान किया है। इससे घर में पवित्रता बनी रहेगी।  गणेशोत्सव की समय अवधि के बाद या तो विसर्जित करके अपने बाग़-बगीचों में पेड़-पौधों के लिए जैविक खाद के रूप में उपयोग कर सकते हैं। इसे करीब के किसी भी नदी, तालाब अथवा समुद्र में विसर्जित कर सकते हैं जिसके फलस्वरूप पानी भी अशुद्ध नहीं होगा। पानी में रहने वाले जीवों का जीवन भी सुरक्षित रहेगा एवं ये बहुत से जीवों के लिए भोजन के रूप में उपयोग हो जाएगा। हम सबको पता है कि पूर्व में पीओपी (प्लास्टर ऑफ पेरिस) से मूर्तियां बनती थीं उनसे जल प्रदूषण होता था।  

डॉ. कथीरिया ने बताया कि गोमय किसी भी तरह के विकिरण को सोखने की क्षमता रखता है। अतः घर में गोमय निर्मित श्री गणेश जी की प्रतिमा हमें विकिरण की कुप्रभावों से बचाने में भी सहायक होगी। प्रदूषण से बचाव के साथ गौसेवा भी होगी। गौ उत्पादों के निर्माण में लगे व्यावसायियों को आर्थिक मजबूती मिलेगी और पर्यावरण रक्षा भी होगी। युवा-महिलाओं को रोजगार मिलेगा, गौशालाएं स्वावलम्बन की दिशा में आगे बढ़ेंगी। कौशल सृजन से रोजगार भी मिलेगा। गाँव से शहर की और पलायन रुकेगा। गाँव की अर्थव्यवस्था मजबूत होगी और देश आत्मनिर्भर बनेगा। 
डॉ. वल्लभभाई कथीरिया  ने राष्ट्रीय कामधेनु आयोग की इस पहल से इस कोरोना काल में जन समुदाय से जुड़ने का आह्वान किया। गोमय-गोबर से निर्मित श्री गणेश जी की मूर्ति की स्थापना एवं पूजन के माध्यम से जनरक्षा-राष्ट्ररक्षा-पर्यावरण रक्षा के राष्ट्रीय अभियान में तन-मन-धन से जुड़ने का विनम्र अनुरोध किया। 

यह बता दें कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने मूर्ति विसर्जन के संबंध में अपनी पुराने 2010 के दिशा-निर्देशों को विभिन्न लोगों की राय जानने के आधार पर अब संशोधित कर चुका है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अब अपने नए गाइडलाइन में विशेष तौर पर प्राकृतिक रूप से मौजूद मिट्टी से मूर्ति बनाने और उन पर सिंथेटिक पेंट एवं रसायनों के बजाय प्राकृतिक रंगों के उपयोग पर जोर देने की बात कही है।यही कारण है कि राष्ट्रीय कामधेनु आयोग ने इस बार गणेशोत्सव पर गोमय-गोबर से गणेश मूर्ति बनाने की अपील कर पर्यावरण की रक्षा करने के साथ-साथ प्राकृतिक खेती के लिए सबसे उपयोगी पशु गाय के संरक्षण की अपील की है। चूँकि , मुर्तिकार प्रतिमाओं को रंगने के लिए प्लास्टिक पेंट, विभीन्न रंगों के लिए स्टेनर, फेब्रिक और पोस्टर आदि रंगों का प्रयोग करते हैं। मूर्ति के रंगों को विविधता देने के लिए फोरसोन पाउडर का प्रयोग होता है। ईमली के बीज के पाउडर से गम तैयार किया जाता है एवं उस गोंद से पेंट बनाते हैं। इसके साथ ही प्रतिमाओं को चमक देने के लिए बार्निस का प्रयोग होता है। कुछ प्रतिमाओं को जलरोधी बनाने के लिए डिस्टेंपर का भी प्रयोग करते हैं। एक लिए भारी मात्रा में प्रतिमाओं के विसर्जन से जल प्रदूषण होता है। 

इससे जल प्रदूषण को रोका जा सकता है प्लास्टर ऑफ पेरिस में कई तरह के रसायन होते हैं जो पानी को जहरीला बना सकते हैं।प्लास्टर ऑफ पेरिस में कई तरह के रसायन होते हैं जो पानी को जहरीला बना सकते हैं। अतः यह पानी जलीय जीवों की मृत्यु का कारण बन सकता है। इतना ही नहीं, यह दूषित पानी मनुष्य के लिए भी खतरनाक साबित हो सकता है। खतरनाक रसायन पेरिस ऑफ प्लास्टर में सल्फर, फास्फोरस, जिप्सम, मैग्नेशियम जैसे कई रसायन होते हैं एवं मूर्ति को सजाने में इस्तेमाल होने वाले रंगों में कार्बन, लेड़ व अन्य प्रकार के रसायन होते हैं। जब हम इन रसायनों से बनी प्रतिमाओं को पानी में विसर्जित करते हैं तब इन रसायनों से सबसे पहला खतरा पानी के भीतर पनपने वाले जीवों को होता है। जब हम ऐसे पानी में सांस लेने वाली मछली को खाते हैं तब हमारा जीवन भी खतरे में पड़ जाता है। फेफड़ों को नुकसान पहुंच सकता है मूर्ति को सजाने में इस्तेमाल किए जाने वाले रंग कुछ गैसों का वितरण करते हैं तथा जब हम सांस लेते हैं, इन गैसों से हमारे फेफडों को नुकसान पहुंच सकता है। पर्यावरण एवं स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए जैव वस्तुओं से बनी प्रतिमाओं का इस्तेमाल करना ही सही होगा।

Thursday 23 July 2020

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग ने जिला अधिकारियों को गोवंश सुरक्षा के निर्देश दिए - बरसात में गौशाला पशुओं के स्वास्थ्य सुविधाओं को सुनिश्चित किया जाए :प्रोफेसर श्यामनंदन सिंह


लखनऊ (उत्तर प्रदेश) : 23  जुलाई 2020
प्रदेश के कई  स्थानों में  भारी मानसून की वजह से  बारिश हो रही है।  बरसात में हमेशा मवेशियों के लिए  कईतरह की  कठिन समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।  सही देखभाल न होने की वजह से उनके लिए बरसाती बीमारियां का प्रकोप जानलेवा हो जाता है।  उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के  अध्यक्ष प्रोफेसर  श्याम नंदन सिंह ने  एक सर्कुलर  जारी करते हुए सभी  जिलाधिकारियों एवं  गोरक्षण समितियों से कहा है कि  गौशाला पशुओं के स्वास्थ्य सुरक्षा से लेकर गौशाला के साफ-सफाई को सुनिश्चित करें।  उन्होंने  इस संबंध में जिला प्रशासन द्वारा की गई कार्यवाही की रिपोर्ट भी मांगी है।

प्रोफेसर सिंह ने  आयोग की तरफ से जारी सर्कुलर में बताया है कि प्रदेश सरकार द्वारा गोवंश संरक्षण -संवर्धन के लिए स्थाई एवं अस्थाई गोवंश संरक्षण केंद्र / स्थल प्रदेश भर में स्थापित किए गए हैं जिनकी बेहतर व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए ।ऐसे स्थलों की देख=रेख एवं मरम्मत नहीं हो पाने से पानी का जमाव तथा कीचड़ हो जाता है जो गौशाला पशुओं के लिए परेशानी ही नहीं जानलेवा बीमारी का कारण बनता है। बरसात के समय में वैसे भी खुरपका - मुंहपका  ,गलघोटू , लंगडी आदि संक्रामक रोग तेजी से फैलती हैं और इन बीमारियों के रोकथाम की व्यवस्था में लापरवाही से गौशाला पशुओं की जान चली जाती है है। इसलिए सभी संरक्षण केंद्रों ,गौशालाओं तथा पशु -आश्रय स्थलों की सफाई एवं मरम्मत के साथ-साथ टीकाकरण तथा अन्य चिकित्सा संबंधी सावधानियां सुनिश्चित किया जाए। इस कार्य में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती  जानी चाहिए।

सर्कुलर के माध्यम से उन्होंने आगे उन्होंने यह भी कहा है कि  प्रदेश में जहां कहीं भी  संबंधित जिला के परि क्षेत्र में  पशु दुर्घटना से  घायल हो जाते हैं  उन्हें तत्काल  चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जाए। सड़क पर दुर्घटनाग्रस्त पशु को किसी भी हालत में पड़े नहीं रहना चाहिए। जिला प्रशासन द्वारा  हर हालत में गौशाला पशुओं के रख-रखाव एवं स्वास्थ्य संबंधी हर समस्या के निराकरण के लिए अधीनस्थ विभाग को हिदायत देकर पशुओं की सुरक्षा की जाए।


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Thursday 9 July 2020

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग अध्यक्ष ने मुख्यमंत्री को आपदा राहत कोष (कोविड-19 महामारी) में 11 लाख चेक भेंट किया



लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ; 9 जुलाई 2020

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग इस समय अपने कई कार्यक्रमों को लेकर गाय के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था के  लिए नई- नई पहल को लेकर सामने आ रहा है और गाय को कभी नहीं सेवानिवृत्त होने का नया प्रतिमान स्थापित करने में जुड़ा हुआ है। आयोग का मानना है कि गाय बूढी  हो या जवान वह अपने तथा अपने संतति के द्वारा अभावों  से ग्रस्त गौशाला को स्वाबलंबी बना सकती हैं जिसका प्रयोग उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग अब आरंभ कर दिया। गोधन से समृद्धि की ओर के संदेश को लेकर उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से मुलाकात की और आयोग की ओर से मुख्यमंत्री आपदा कोष में दान देकर आयोग के मनोबल और अभिनव रणनीति का सांकेतिक संदेश पहुंचाया।

उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रोफेसर श्याम नंदन सिंह ने आयोग की ओर से आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के लखनऊ स्थित सरकारी आवास 5 - कालिदास मार्ग पर मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष (कोविड-19 महामारी)  में सहायतार्थ 11 लाख 13 हजार रुपए की धनराशि का चेक भेंट किया। इस अवसर पर आयोग के तेज-तर्रार उपाध्यक्ष , अतुल सिंह , सदस्य भोले सिंह सहित हमीरपुर संसदीय क्षेत्र के लोकप्रिय  पूर्व - सांसद गंगा चरण राजपूत भी उपस्थित थे.यह बता दें कि उत्तर प्रदेश गौ सेवा आयोग इस समय गौशालाओं के स्वाबलंबन के लक्ष्य को लेकर "आदर्श ग्राम- आदर्श गौशाला" पर कार्य कर रहा है। आयोग का विश्वास है कि वर्ष के अंत तक इसके परिणाम आने लगेंगे।

 


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Saturday 4 July 2020

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ के तीसरे दिन का आंदोलन उग्र रूप में-कल निर्धारित होगी संघर्ष की अगली रणनीति





रांची (झारखंड) ;04 जुलाई, 2020 

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ  प्रदेश के पशु चिकित्सकों के भविष्य को लेकर अत्यंत चिंतित है कि राज्य सरकार सेवा नियमावली को दरकिनार कर सेवा शर्तों के विरुद्ध कार्य कर रही है। जिसका नतीजा है कि प्रदेश भर के पशुचिकित्सक अपने भविष्य को लेकर के अत्यंत चिंतित है। पिछले कई महीनों से लगातार सरकार से अनुरोध करते आ रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है और न नियम विरूद्ध सरकार कार्य कर रहा है। झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ के अनुसार  पशुपालन विभाग में पदाधिकारियों के सेवा निवृति उपरांत निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों के पद 7 महीनों से अधिक समय से रिक्त चल रहे है। जिसके चलते कुछ जिलों  के कार्यालयों की स्थापना के अन्तर्गत आने वाले पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की वेतन निकासी बाधित हो गई है। सरकार/विभाग स्तर से की गई तात्कालिक व्यवस्था नियम विरुद्ध है, उपर से जिला प्रशासन के मनमानी के कई उदाहरण सामने आए हैं। 

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह बताया गया है कि झारखंड राज्य को छोड़ कर के शायद कोई राज्य होगा जहां पर पशु चिकित्सकों की सेवाओं का बेहतर उपयोग नहीं हो रहा और सेवा नियमावली के अनुसार अधिकारियों को समुचित सुविधा देने में कोताही बरती जा रही होगी। संघ का कहना है कि पशुपालन विभाग के विभागाध्यक्ष पशुपालन निदेशक होते है जिनके स्तर से पूरे राज्य में विभाग के कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों के वेतन सहित सभी योजनाओं का आवंटनादेश निर्गत किया जाता है। साथ ही निदेशक स्तर से रिक्त पदोें पर पदस्थापना न हो पाने की स्थिति में निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति जिला के सक्षम एवं योग्य वरीय पदाधिकारी को प्रत्यायोजन किया जाना चाहिए था जो नहीं हो रहा है।इस संबंध में संघ द्वारा अनेक पत्र एवं स्मार देने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।

संघ का कहना है कि कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के संयुक्त निदेशक-सह-संयुक्त सचिव ने प्रभावित जिलो में रिक्त पदों पर वेतनादि की निकासी करने के लिए जिला उपायुक्त को अपने स्तर से कार्रवाई करने का अप्रत्याशित पत्र प्रेषित किया गया है। जिसमे उपायुक्तो को अपने स्तर से वेतनादि की निकासी हेतु विभागीय शक्ति सक्षम पदाधिकारी को प्रत्यायोजित किया जाने का निदेश दिया गया है।इसी संदर्भ में उपायुक्त महोदय, पलामु द्वारा गैर संवर्गीय जिला मत्स्य पदाधिकारी को पशुपालन विभाग के जिला एवं प्रमण्डल स्तरीय पदों के लिए निकासी एवं व्ययन का वित्तीय शक्ति प्रत्यायोजित किया है, जो वैधानिक रुप से नियम विरुद्ध है। अंततः इन्हीं सारे मामलों को लेकर के झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ  मजबूर होकर के आंदोलन करने के लिए उतारू हुआ है।

विज्ञप्ति में एतराज करते हुए कहा गया है कि जिला मत्स्य पदाधिकारी का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड - पे 4800 है, जबकि पशुपालन पदाधिकारियों का मूल कोटि स्तर का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड पे 5400 है। उपायुक्त पलामु द्वारा उच्चतर वेतनमान के पदाधिकारी के वेतनादि की निकासी हेतु निम्न वेतनमान के पदाधिकारी को विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया जाना नियमानुकूल नही है। ठीक उसी तरह क्षेत्रीय निदेशक पशुपालन का पद प्रमण्डल स्तर का है और उपायुक्त स्तर से आदेश निर्गत करना उनकी अधिकारिता की सीमा से परे है तथा प्रख्यातित नियमो के पूर्णतः प्रतिकूल है। यह पशुपालन सेवा संवर्ग के लिए अपमान जनक है यह पशुपालन कैडर के पदाधिकारियों के मनोबल को गिराता है।

यह बता दें कि झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ का प्रदर्शन पर उतरने का मुख्य कारण यह भी है कि उपायुक्त द्वारा पशुपालन विभाग के स्थापना/कार्यालय का निकासी एवं व्ययन का आदेश अराजपत्रित पदाधिकारी को देना विभागीय अराजकता के साथ-साथ गलत परम्परा को मान्यता देना हैै। पशुपालन विभाग के पदो पर भारतीय पशुचिकित्सा परिषद/झारखण्ड पशुचिकित्सा परिषद में निबंधित पशुचिकित्सा पदाधिकारी का होना अनिवार्य है। उपायुक्त महोदय, पलामु ने भारतीय पशुचिकित्सा परिषद की अधिनियम 1984 के अध्याय 04 के नियम 30 का सीधा उलंधन किया है, तथा संवैधानिक संकट खडा कर दिया है।

संघ का मानना है कि एक अति महत्वपूर्ण तकनीकि विभाग को जानबुझ कर पंगु  बनाने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य स्तरीय झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने इन वैधानिक विसंगतियों की त्रुटि को शीघ्र दूर करने का सरकार से लगातार अनुरोध किया है, परन्तु सरकार स्तर से अब तक सार्थक प्रयास परिणत नहीं हुआ है। इन्ही विसंगतियों के विरुद्ध झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ की केन्द्रीय कमेटी ने विरोध स्वरुप  02 जुलाई 2020 से 04 जुलाई 2020 तक तीन दिनों का काला बिल्ला लगा कर अहिसात्मक एवं सांकेतिक विरोध का निर्णय लिया है। जिसके फलस्वरुप जिला ईकाई के सभी सदस्य (पशुपालन सेवा संवर्ग के पदाधिकारी) तीन दिनों तक काला बिल्ला लगाकर अपना विरोध प्रकट कर रहें है, ताकि सरकार स्तर से पशुपालन कैडर की अनदेखी न की जाए।

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अध्यक्ष ने बताया कि आज विरोध का तीसरा और अंतिम दिन है। राज्य एवं जिला के सभी पशु चिकित्सा पदाधिकारियों दवारा बढ़ चढ़ कर विरोध दर्ज किया गया और यह सेवा नियमावली के तहत अपने अधिकार को प्राप्त करने की दिशा मे सार्थक पहल है। राज्य सरकार द्वारा पशु चिकित्सा पदाधिकारियों के नियमानुसार  सेवा संबंधी मौलिक अधिकारों के खिलाफ कुछ भी होता है तो उसका विरोध किया जाएगा। उन्होंने बताया कि आज तीसरे दिन भी पूरे प्रदेश के पदाधिकारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया,खास करके  हजारीबाग, खूँटी, पलामू, पाकुड़, दुमका, साहेबगंज जमशेदपुर इत्यादि जिलों में पदाधिकारियों ने काला बिल्ला लगाकर मासिक बैठक में भाग लिया और अपना ऐतराज़ प्रकट किया।

कल दिनांक 05/07/20 रविवार को कार्यकारणी की आपात बैढ़क प्रांतिकृत पशु चिकित्सालय, चुटिया परिसर में पूर्वाह्न 11 बजे रखी गई है, जिसम़े आगे की रणनीति तय की जाएगी।


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हिमांचल प्रदेश में कब शुरू होगा गोधन योजना - जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारियों ने योजना लागू करने की मांग की


मंडी (हिमाचल) प्रदेश 4 जुलाई 2020 : एडब्ल्यू ब्यूरो

भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड से मनोनीत जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारी एवं राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित,
मदनलाल पटियाल  एवं  जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारी  सीताराम वर्मा ने हिमाचल प्रदेश सरकार से मांग की है कि छत्तीसगढ़ सरकार की तरह प्रदेश में गोधन न्याय योजना शुरू की जाए ताकि प्रदेश सरकार किसानों से वर्गो सदनों गौशालाओं से गोबर खरीद कर किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सके।  इस मुहिम के संचालक पटियाल ने बताया कि  गोबर गोमूत्र  इस समय बड़े लाभ का सौदा है।  पूरे देश भर में  गोबर गोमूत्र से लाभ कमाने के  लिए नई-नई आजमाइश की जा रही है।  इस लिए छत्तीसगढ़ राज्य जैसा प्रयास हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा  भी किया जाना चाहिए। 

पटियाल पिछले तकरीबन 2 दशकों से  भारत सरकार के जीव जंतु कल्याण बोर्ड से अधिकारी के रूप में कार्य कर रहे हैं।  उनके उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए सरकार ने  पशु पक्षियों पर होने वाले अनुसंधान  एवं परीक्षण  की देखभाल के लिए बनाई गई समिति-सीपीसीएसईए का भी जिम्मेदारी  उन्हें सौंपा हुआ है। पटियाल हिमाचल प्रदेश के महत्वपूर्ण पशुओं पर परीक्षण होने वाले  संस्थानों की  जांच कमेटी  के सदस्य की भी भूमिका  कई साल से निभा रहे हैं।  पटियाल ने हिमाचल सरकार से आग्रह किया है कि  यदि छत्तीसगढ़ राज्य जैसी व्यवस्था प्रदेश में कर दी जाए तो किसानों को  और पशु सेवकों को बहुत बड़ा लाभ होगा।  कोई भी पशु छुट्टा सड़क पर दिखाई नहीं देगा और न ही कत्लखाने जाएगा। 

उन्होंने बताया कि गोबर गोमूत्र एक ऐसी  प्राकृतिक उपाय है कि जिसमें भूमि को पोषित करने वाले सभी आवश्यक तत्व मौजूद होते है। गोबर गोमूत्र के बगैर  आज खेती-बाड़ी करना मुश्किल है इसके बिना न ही  स्वस्थ, सुरक्षित एवं पोस्टिक खाद्यान्न, फल फूल या सब्जी  पैदा  किया जा सकता है और न  ही आमदनी  पाई जा सकती।  यही कारण है कि केंद्र सरकार  जीरो बजट की खेती - ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे रही है।  ऑर्गेनिक खेती का सिद्धांत आज के परिपेक्ष में   सबसे  बेहतरीन खेती का माध्यम है  जबकि रासायनिक  उर्वरकों का प्रयोग न केवल   किसानों को हताश निराश  बनाने वाली है।  इस प्रकार गोबर की खाद किसान को  बढ़िया आमदनी देने वाला बहुत बड़ा साधन है। क्योंकि, यह  पर्यावरण और धरती के लिए भी सुरक्षा का सस्ता  संरक्षण का उपाय है।  उन्होंने कहा कि  ऐसे कार्यों को देश के सभी  रासायनिक उर्वरक  एवं कीटनाशक  उत्पादन करने वाली प्राइवेट  कंपनियां  धीरे धीरे  ऑर्गेनिक खाद का उत्पादन कर किसानों को मुहैया कराना चाहिए। 

छत्तीसगढ़ सरकार को आभार प्रकट करते हुए  उन्होंने बताया कि  गोबर की खरीदारी से  कत्लखाने जाने वाले पशुओं को बचाया जा सकेगा।  अगर ऐसा  हिमाचल प्रदेश में सरकार का निर्णय होता है तो सड़क पर कोई पशु दिखाई नहीं देगा  लोगों में मवेशियों के पालने की होड़ लग जाएगी।  इस तरह के जब भी उन्नत किस्म के  तौर तरीके  प्रकाश में आते हैं  तो सरकार की सबसे पहली जिम्मेदारी है होनी चाहिए कि  इस तरह की अनुपम योजनाओं को संचालित करने के लिए  बेहतरीन योजना बनाएं  और अनुशासनात्मक ढंग से उसका संचालन करें तभी सफलता हाथ लगेगी।  उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपने प्रदेश के किसानों को आश्वासन दिया है कि  प्रदेश भर के सभी किसानों की भागीदारी  निश्चित ही नहीं करेंगे बल्कि  सभी को लाभ प्रदान दिला कर दिखाएंगे। 
पटियाल ने बताया कि आज स्थिति यह हो गई है कि  गांव में कोई किसान  अब दुधारू पशु पालना नहीं चाहता है।  यही कारण है कि किसानों की जगह आज बड़ी बड़ी डेरिया उनका स्थान ले ली है जहां पर न  तो पशुओं का सम्मान होता है और न  ही  उनसे मिलने वाले  उत्पाद की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता है।  डेयरी फार्म का हमेशा यही इरादा होता है कि ज्यादा से ज्यादा  पशु उत्पादन और उसकी आमदनी उसे प्राप्त हो।  इसी का नतीजा है कि  पूरी दुनिया में  जानवर पर होने वाले अत्याचार  तथा अपराध  बढ़ते जा रहे हैं।  इंसान नित नए-नए खतरों से घिरता जा रहा है।  उन्होंने कहा कि अब अवसर आ गया है कि  पशुओं पर किए जाने वाले किसी प्रकार के अपराध और अत्याचार  रोका जाए क्योंकि इससे इंसान को सिवाय नुकसान होने के  फायदा नहीं हो सकता। नहीं तो करोना वायरस जैसी विपत्तियां आती रहेंगी  और मानव का सफाया कर के चली जाएंगी।  इसलिए बेहतर है कि हम प्रकृति की इज्जत करें  और प्रकृति हमारी इज्जत करें। 

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Friday 3 July 2020

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ का विरोध प्रदर्शन आज दूसरे दिन भी जारी-काली पट्टी बांधकर लोग ऑफिस गए




विरोध प्रदर्शन की  स्थिति अगर लगातार बनी रहेगी  तो प्रदेश में पशु स्वास्थ्य सेवा और उसकी गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा  

रांची (झारखंड) ; 3 जुलाई, 2020 ए197डब्ल्यू ब्यूरो

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ का विरोध प्रदर्शन और दूसरे दिन भी जारी रहा। कल के मुकाबलेप्रदेश के हर जिले में पशु चिकित्सा अधिकारियों ने काली पट्टी बांधकर विरोध किया। संघ के अध्यक्ष डॉ विमल हेंब्रम ने बताया कि इस शांतिपूर्ण विरोध के लिए नई योजनाएं बनाई जा रही है। उन्होंने ने बताया कि यह प्रदर्शन जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा शांतिपूर्ण प्रदर्शन की तरीके भी बदलते रहेंगे। प्रदेशभर के पशु चिकित्सकों में अगर दुख और निराशा है तो उतने ही अधिक आक्रोश आक्रोश भी है जो धीरे-धीरे तीव्र होता जा रहा है।डॉ हेंब्रम ने बड़ा गंभीर हो करके बताया कि यह स्थिति अगर लगातार बनी रही  तो प्रदेश में पशु स्वास्थ्य सेवा और उसकी गुणवत्ता पर प्रतिकूल असर पड़ेगा।  

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ  प्रदेश के पशु चिकित्सकों के भविष्य को लेकरके अत्यंत चिंतित है कि राज्य सरकार सेवा नियमावली को दरकिनार कर सेवा शर्तों के विरुद्ध कार्य कर रही है। जिसका नतीजा है कि प्रदेश भर के पशुचिकित्सक अपने भविष्य को लेकर के अत्यंत चिंतित है। पिछले कई महीनों से लगातार सरकार से अनुरोध करते आ रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है और न नियमानुसार प्रशासन कार्य कर रहा है। झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ के अनुसार  पशुपालन विभाग में पदाधिकारियों के सेवा निवृति उपरांत निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों के पद 5  या 6  महिनों से रिक्त चल रहे है। जिसके चलते कुछ जिलो के कार्यालयों की स्थापना के अन्तर्गत आने वाले पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की वेतन निकासी बाधित हो गई है।साथ ही साथ प्रशासनिक लापरवाही के कई उदाहरण सामने आए हैं।  

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह बताया गया है कि झारखंड राज्य को छोड़ कर के शायद कोई राज्य होगा जहां पर पशु चिकित्सकों की सेवाओं का बेहतर उपयोग नहीं हो रहा और सेवा नियमावली के अनुसार अधिकारियों को समुचित सुविधा देने में कोताही बरती जा रही होगी। संघ का कहना है कि पशुपालन विभाग के विभागाध्यक्ष पशुपालन निदेशक होते है जिनके स्तर से पूरे राज्य में विभाग के कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों के वेतन सहित सभी योजनाओं का आवंटनादेश निर्गत किया जाता है। साथ ही निदेशक स्तर से रिक्त पदोें पर पदस्थापना न हो पाने की स्थिति में निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति जिला के सक्षम एवं योग्य वरीय पदाधिकारी को प्रत्यायोजन किया जाना चाहिए था जो नहीं हो रहा है।इस संबंध में संघ द्वारा अनेक स्मरण पत्र देने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। 

संघ का कहना है कि कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के संयुक्त निदेशक-सह-संयुक्त सचिव ने प्रभावित जिलो में रिक्त पदों पर वेतनादि की निकासी करने के लिए जिला उपायुक्त को अपने स्तर से कार्रवाई करने का अप्रत्याशित पत्र प्रेषित किया गया है। जिसमे उपायुक्तो को अपने स्तर से वेतनादि की निकासी हेतु विभागीय शक्ति सक्षम पदाधिकारी को प्रत्यायोजित किया जाने का निदेश दिया गया है।इसी संदर्भ में उपायुक्त महोदय, पलामु द्वारा गैर संवर्गीय जिला मत्स्य पदाधिकारी को जिला एवं प्रमण्डल स्तरीय पदों के लिए निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया गया है, जो वैधानिक रुप से नियम विरुद्ध है। इन्हीं सारे मामलों को लेकर के झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अपनी सब्र की सीमा तोड़ चुका है और मजबूर होकर के आंदोलन करने के लिए उतारू हुआ है। 

विज्ञप्ति में एतराज करते हुए कहा गया है कि जिला मत्स्य पदाधिकारी का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड - पे 4800 है, जबकि पशुपालन पदाधिकारियों का मूल कोटि स्तर का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड पे 5400 है। उपायुक्त पलामु द्वारा उच्चतर वेतनमान के पदाधिकारी के वेतनादि की निकासी हेतु निम्न वेतनमान के पदाधिकारी को विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया जाना नियमानुकूल नही है। ठीक उसी तरह क्षेत्रीय निदेशक पशुपालन का पद प्रमण्डल स्तर का है और उसके स्थापना का विभागीय शक्ति का प्रभार का आदेश निर्गत करना उनकी अधिकारिता की सीमा से परे है तथा प्रख्यातित नियमो के पूर्णतः प्रतिकूल है। यह पशुपालन सेवा संवर्ग के लिए अपमान जनक एवं कैडर के पदाधिकारियों के मनोबल को गिराता है। 

यह बता दें कि झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ का प्रदर्शन पर उतरने का मुख्य कारण यह भी है कि उपायुक्त द्वारा पशुपालन विभाग के स्थापना/कार्यालय का निकासी एवं व्ययन का आदेश अराजपत्रित पदाधिकारी को देना विभागीय अराजकता के साथ-साथ गलत परम्परा को मान्यता देना हैै। पशुपालन विभाग के पदो पर भारतीय पशुचिकित्सा परिषद/झारखण्ड पशुचिकित्सा परिषद में निबंधित पशुचिकित्सा पदाधिकारी का होना अनिवार्य है। उपायुक्त महोदय, पलामु ने भारतीय पशुचिकित्सा परिषद की अधिनियम 1984 के अध्याय 04 के नियम 30 का सीधा उलंधन किया है, तथा संवैधानिक संकट खडा कर दिया है। 

संघ का मानना है कि एक अति महत्वपूर्ण तकनीकि विभाग को जानबुझ कर पंगु  बनाने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य स्तरीय झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने इन वैधानिक विसंगतियों की त्रुटि को शीघ्र दूर करने का सरकार से लगातार अनुरोध किया है, परन्तु सरकार स्तर से अब तक सार्थक प्रयास परिणत नहीं हुआ है। इन्ही विसंगतियों के विरुद्ध झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ की केन्द्रीय कमेटी ने विरोध स्वरुप  02 जुलाई 2020 से 04 जुलाई 2020 तक तीन दिनों का काला बिल्ला लगा कर अहिसात्मक एवं सांकेतिक विरोध का निर्णय लिया है। जिसके फलस्वरुप जिला ईकाई के सभी सदस्य (पशुपालन सेवा संवर्ग के पदाधिकारी) तीन दिनों तक काला बिल्ला लगाकर अपना विरोध प्रकट कर रहें है, ताकि सरकार स्तर से पशुपालन कैडर की अनदेखी न की जाए। 

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अध्यक्ष ने बताया कि आज विरोध का दूसरा दिन है। राज्य एवं जिला के सभी पशु चिकित्सा पदाधिकारियों दवारा आंदोलन लगातार जारी है और यह सेवा नियमावली के तहत अपने अधिकार को प्राप्त करके  रहेगा। राज्य सरकार द्वारा पशु चिकित्सा पदाधिकारियों के नियमानुसार  सेवा संबंधी मौलिक अधिकारों के खिलाफ कुछ भी होता है तो उसका विरोध किया जाएगा। 

उन्होंने बताया कि आज दूसरा दिन भी पूरे प्रदेश के पदाधिकारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया,खास करके  हजारीबाग खूँटी पलामू जिला में पदाधिकारियों ने काला बिल्ला लगाकर मासिक बैठक में भाग लिया और अपना ऐतराज़ प्रकट किया।

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Thursday 2 July 2020

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ का आज से आंदोलन आरंभ -संघ ने कहा कि सेवा नियमावली के अनुसार सरकार कार्य करें - प्रदेश भर के पशु चिकित्सा पदाधिकारियों ने काली पट्टी बांधकर अपना आक्रोश व्यक्त किया



रांची (झारखंड) ; 2 जुलाई, 2020 : एडब्ल्यू ब्यूरो

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ  प्रदेश के पशु चिकित्सकों के भविष्य को लेकरके अत्यंत चिंतित है कि राज्य सरकार सेवा नियमावली को दरकिनार कर सेवा शर्तों के विरुद्ध कार्य कर रही है। जिसका नतीजा है कि प्रदेश भर के पशुचिकित्सक अपने भविष्य को लेकर के अत्यंत चिंतित है। पिछले कई महीनों से लगातार सरकार से अनुरोध करते आ रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है और न नियमानुसार प्रशासन कार्य कर रहा है। झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ के अनुसार  पशुपालन विभाग में पदाधिकारियों के सेवा निवृति उपरांत निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों के पद 5  या 6  महिनों से रिक्त चल रहे है। जिसके चलते कुछ जिलो के कार्यालयों की स्थापना के अन्तर्गत आने वाले पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की वेतन निकासी बाधित हो गई है।साथ ही साथ प्रशासनिक लापरवाही के कई उदाहरण सामने आए हैं।  

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह बताया गया है कि झारखंड राज्य को छोड़ कर के शायद कोई राज्य होगा जहां पर पशु चिकित्सकों की सेवाओं का बेहतर उपयोग नहीं हो रहा और सेवा नियमावली के अनुसार अधिकारियों को समुचित सुविधा देने में कोताही बरती जा रही होगी। संघ का कहना है कि पशुपालन विभाग के विभागाध्यक्ष पशुपालन निदेशक होते है जिनके स्तर से पूरे राज्य में विभाग के कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों के वेतन सहित सभी योजनाओं का आवंटनादेश निर्गत किया जाता है। साथ ही निदेशक स्तर से रिक्त पदोें पर पदस्थापना न हो पाने की स्थिति में निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति जिला के सक्षम एवं योग्य वरीय पदाधिकारी को प्रत्यायोजन किया जाना चाहिए था जो नहीं हो रहा है।इस संबंध में संघ द्वारा अनेक स्मरण पत्र देने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।


संघ का कहना है कि कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के संयुक्त निदेशक-सह-संयुक्त सचिव ने प्रभावित जिलो में रिक्त पदों पर वेतनादि की निकासी करने के लिए जिला उपायुक्त को अपने स्तर से कार्रवाई करने का अप्रत्याशित पत्र प्रेषित किया गया है। जिसमे उपायुक्तो को अपने स्तर से वेतनादि की निकासी हेतु विभागीय शक्ति सक्षम पदाधिकारी को प्रत्यायोजित किया जाने का निदेश दिया गया है।इसी संदर्भ में उपायुक्त महोदय, पलामु द्वारा गैर संवर्गीय जिला मत्स्य पदाधिकारी को जिला एवं प्रमण्डल स्तरीय पदों के लिए निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया गया है, जो वैधानिक रुप से नियम विरुद्ध है। इन्हीं सारे मामलों को लेकर के झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अपनी सब्र की सीमा तोड़ चुका है और मजबूर होकर के आंदोलन करने के लिए उतारू हुआ है।


विज्ञप्ति में एतराज करते हुए कहा गया है कि जिला मत्स्य पदाधिकारी का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड - पे 4800 है, जबकि पशुपालन पदाधिकारियों का मूल कोटि स्तर का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड पे 5400 है। उपायुक्त पलामु द्वारा उच्चतर वेतनमान के पदाधिकारी के वेतनादि की निकासी हेतु निम्न वेतनमान के पदाधिकारी को विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया जाना नियमानुकूल नही है। ठीक उसी तरह क्षेत्रीय निदेशक पशुपालन का पद प्रमण्डल स्तर का है और उसके स्थापना का विभागीय शक्ति का प्रभार का आदेश निर्गत करना उनकी अधिकारिता की सीमा से परे है तथा प्रख्यातित नियमो के पूर्णतः प्रतिकूल है। यह पशुपालन सेवा संवर्ग के लिए अपमान जनक एवं कैडर के पदाधिकारियों के मनोबल को गिराता है।



यह बता दें कि झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ का प्रदर्शन पर उतरने का मुख्य कारण यह भी है कि उपायुक्त द्वारा पशुपालन विभाग के स्थापना/कार्यालय का निकासी एवं व्ययन का आदेश अराजपत्रित पदाधिकारी को देना विभागीय अराजकता के साथ-साथ गलत परम्परा को मान्यता देना हैै। पशुपालन विभाग के पदो पर भारतीय पशुचिकित्सा परिषद/झारखण्ड पशुचिकित्सा परिषद में निबंधित पशुचिकित्सा पदाधिकारी का होना अनिवार्य है। उपायुक्त महोदय, पलामु ने भारतीय पशुचिकित्सा परिषद की अधिनियम 1984 के अध्याय 04 के नियम 30 का सीधा उलंधन किया है, तथा संवैधानिक संकट खडा कर दिया है। 

संघ का मानना है कि एक अति महत्वपूर्ण तकनीकि विभाग को जानबुझ कर पंगु  बनाने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य स्तरीय झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने इन वैधानिक विसंगतियों की त्रुटि को शीघ्र दूर करने का सरकार से लगातार अनुरोध किया है, परन्तु सरकार स्तर से अब तक सार्थक प्रयास परिणत नहीं हुआ है। इन्ही विसंगतियों के विरुद्ध झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ की केन्द्रीय कमेटी ने विरोध स्वरुप  02 जुलाई 2020 से 04 जुलाई 2020 तक तीन दिनों का काला बिल्ला लगा कर अहिसात्मक एवं सांकेतिक विरोध का निर्णय लिया है। जिसके फलस्वरुप जिला ईकाई के सभी सदस्य (पशुपालन सेवा संवर्ग के पदाधिकारी) तीन दिनों तक काला बिल्ला लगाकर अपना विरोध प्रकट कर रहें है, ताकि सरकार स्तर से पशुपालन कैडर की अनदेखी न की जाए। 

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अध्यक्ष ने बताया कि आज से राज्य एवं एवं जिला के सभी पशु चिकित्सा पदाधिकारियों आंदोलन आरंभ हो गया है और यह सेवा नियमावली के तहत अपने अधिकार को प्राप्त करके  रहेगा। राज्य सरकार द्वारा पशु चिकित्सा पदाधिकारियों के नियमानुसार  सेवा संबंधी मौलिक अधिकारों के खिलाफ कुछ भी होता है तो उसका विरोध किया जाएगा। उन्होंने बताया कि आज के शुभारंभ में पूरे प्रदेश के पदाधिकारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया,खास करके बोकारो में अधिकारियों ने काला बिल्ला लगाकर मासिक बैठक में भाग लिया और अपना ऐतराज़ प्रकट किया।

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Tuesday 30 June 2020

करेंद गाँव को ऐसा मॉडल गाँव बनाना है, जिसे देश दुनिया के लोग देखने आएं: गोसेवा आयोग





करेंद गांव को ऐसा मॉडल गांव बनाना है, जिसका नाम प्रदेश में ही नहीं बल्कि पूरे देश में हो और लोग देखने आएं। हमारी इच्छा है कि इस गांव में एक बार मुख्यमंत्री भी आएं

करेंद,लखनऊ (उत्तर प्रदेश) ; 1 जुलाई 2020 :  डॉ.  पी. के. त्रिपाठी 

करेंद गांव को ऐसा मॉडल गांव  बनाना है, जिसका नाम प्रदेश  में ही नहीं बल्कि पूरे देश में हो और लोग देखने आएं। हमारी इच्छा है कि इस गांव में एक बार मुख्यमंत्री  भी आएं। यही नहीं, अगले महीने प्रधानमंत्री 'मन की बात' कार्यक्रम में इस गांव की चार महिलाओं का नाम अवश्य लें, क्योंकि प्रधानमंत्री हर बार 'मन की बात'  में किसी न किसी महिला, पुरुष या बच्चे का नाम अवश्य लेते हैं। यह विचार सोमवार को राजधानी के विकास खण्ड माल की ग्राम पंचायत अहमदपुर  में आयोजित एक किसान गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए गोसेवा आयोग के अध्यक्ष प्रो. श्याम नंदन सिंह  ने व्यक्त किए।


इस गोष्ठी का आयोजन गोसेवा आयोग और यूनाइट फाउण्डेशन की संयुक्त पहल के अन्तर्गत किया गया था। गोसेवा आयोग के अध्यक्ष प्रो. श्याम नंदन सिंह ने कहा कि इजराइल हमसे एक साल पहले स्वतंत्र राष्ट्र बना था, जिसकी आबादी दिल्ली से भी कम है, लेकिन उसकी टेक्नॉलाजी का उपयोग पूरी दुनिया कर रही है। इसके अलावा 12 देशों से घिरे होने के बावजूद इजराइल की ओर कोई आंख उठाकर नहीं देख सकता है। 

उन्होंने कहा कि हमें गोबर से उपले और गमले बनाने की मशीनों का प्रयोग करना चाहिए और गोबर से खाद एवं गोमूत्र से कीटनाशक बनाने के लिए प्रयास करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मोदी जी कहते हैं कि आत्मनिर्भर बनो और यह तभी सम्भव है, जब गांव के लोग एकजुट होकर रोजगार से जुड़ जाएं। उन्होंने इस दौरान गौशाला का निरीक्षण किया और सागौन का पेड़ लगाकर वृक्षारोपण की शुरुआत की। उनके साथ कई लोगों ने भी पौधे लगाए।

इससे पूर्व जिला कृषि अधिकारी आकाश मिश्रा ने कहा कि उनके विभाग के पास किसानों के लिए कई योजनाएं हैं, जिनसे किसान भाई लाभ उठा सकते हैं। उन्होंने कहा कि इस गांव में जिन किसानों को अभी तक किसान सम्मान निधि का पैसा नहीं मिल रहा है, वह लोग अतिशीघ्र अपने-अपने अभिलेख जमा कर दें। अगले महीने उनके खाते में पैसा आ जाएगा और जिनके अभिलेखों में त्रुटियां होंगी उन्हें दूर करा दिया जाएगा। 

इसके अलावा किसान क्रेडिट कार्ड बनवाने के लिए भी सहायक विकास अधिकारी बैंक के साथ मिलकर शत प्रतिशत कार्ड बनवाने का काम करेंगे। उन्होंने कहा कि महिलाओं को कस्टम हायर सेन्टर के माध्यम से किसानों को पचास प्रतिशत छूट मिलती है और महिला समूहों को 75 प्रतिशत छूट मिलती है। ऐसी ही अनेक योजनाओं की विस्तार से जानकारी दी।

जिला उपायुक्त ग्रामीण आजीविका मिशन सुखराज बंधु ने कहा कि उनका विभाग समूहों की महिलाओं को हर प्रकार का प्रशिक्षण नि:शुल्क दिलाता है। इसके अलावा हर प्रकार के रोजगार से जोड़ने के लिए विभाग प्रयत्नशील है। कई योजनाओं में उनको प्राथमिकता दी जा रही है। उन्होंने कहा कि गांवों में ग्राम संगठनों का गठन कर बैंकों में खाते खुलवाए जा रहे हैं, जिससे महिला समूह अधिक पैसे वाले रोजगार भी एक साथ मिलकर शुरू कर सकें।

सहायक जिला पंचायतराज अधिकारी ए.पी. मौर्य ने कहा कि गांव के विकास में पंचायत की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि ग्राम पंचायत के सचिव की जिम्मेदारी होती है कि वह गांव के हर व्यक्ति की समस्या का समाधान कराए और सरकार की अधिकांश योजनाओं का लाभ सभी को मिले। उन्होंने कहा कि यहां के प्रधान और सचिव ऐसा प्रयास करेंगे कि अगले कुछ ही दिनों में गांव के हर पात्र व्यक्ति किसी न किसी योजना से जोड़ा जाए।

इससे पूर्व ग्रामीणों ने शिकायत की कि बैंक आफ इंडिया गहदौं शाखा में कोई भी काम दलाल संतोष के ​बिना नहीं हो सकता। यह सुनकर आयोग के अध्यक्ष ने कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए शाखा प्रबन्धक आर.एस.गौतम को मौके पर तलब कर कड़ी फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि यदि भविष्य में बैंक के आसपास कोई भी दलाल दिखाई पड़ा और जनता ने ​इसकी शिकायत की तो दलाल के साथ-साथ आपके खिलाफ भी कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसके बाद शाखा प्रबन्धक ने कहा कि किसी का भी कोई काम न हो तो वह उनसे सम्पर्क करे, किसी प्रकार की परेशानी नहीं होगी। 

यूनाइट फाउण्डेशन के अध्यक्ष डा.पी.के.त्रिपाठी ने कहा कि हमारी संस्था गांव के विकास में हरसम्भव मदद करेगी। उन्होंने अपने अनुभव किसानों के साथ साझा किए। इस दौरान देवशरन तिवारी, नरेन्द्र मोहन ने भी अपने विचार रखे। गोष्ठी में सोशल ​डिस्टेंसिंग का पालन करने के अलावा सीएचसी के आशिफ खान ने सभी की थर्मल स्क्रीनिंग की।

इस अवसर पर गो सेवा आयोग के सचिव डॉ. अनिल शर्मा, डॉ. संजय यादव, एडीओ कृषि रामऔतार गुप्ता, एडीओ पंचायत अनिल कुमार मिश्रा, एडीओ आईएसबी प्रदीप यादव, एनआरएलएम से ऋषभ शुक्ला, सचिव ग्राम पंचायत सत्य प्रकाश सहित अनेक नागरिक एवं समूह की महिलाएं, किसान उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन यूनाइट फाउण्डेशन के उपाध्यक्ष एवं न्यूज टाइम्स नेटवर्क के स्थानीय सम्पादक राधेश्याम दीक्षित ने किया। गोष्ठी का समापन ग्राम प्रधान राजेन्द्र मौर्य ने किया। ( साभार : न्यूज़ टाइम्स ,लखनऊ )




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झारखंड में पशु चिकित्सकों का आंदोलन कल से आरंभ होगा - झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने समस्याओं को लगातार नजरअंदाज करने का सरकार पर आरोप लगाया



रांची (झारखंड);1 जुलाई 2020  रिपोर्ट:डॉ. आर. बी. चौधरी

झारखंड में पशु चिकित्सकों की अनदेखी निरंतर जारी है।झारखंड जैसे विकासशील राज्य में कृषि के साथ में पशुपालन का बहुत बड़ा महत्व है लेकिन शासन- प्रशासन के मन में खोट होने की वजह से प्रदेश भर के पशु चिकित्सा अधिकारी एक सदमे की हालत में है। हर बारअनुरोध पत्र लिखते हैं लेकिनउस पर कोई कार्यवाही नहीं होती।पत्थरों को नजरअंदाज करने का सिलसिलानिरंतर जारी है।  

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ की ओर से जारी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया गया है कि कृषि, पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के संयुक्त निदेशक -सह- संयुक्त सचिव, अंजनी कुमार के पत्र के आलोक में उपायुक्त पलामू ने जिला के रिक्त पशुपालन विभाग के पदों का प्रभार जिला मत्स्य पदाधिकारी, पलामू को ग्रहण करने का आदेश निर्गत किया है जो नियम विरुद्ध है।  जिसका संघ ने विरोध करते हुए नियमों के उल्लंघन होने का दस्तावेज संलग्न कर आदेश वापस लेने का पत्र दिया है, परन्तु हम पशु चिकित्सकों की भावनाओं को दरकिनार करते हुए 27 जून.2020 को जिला मत्स्य पदाधिकारी, पलामू ने पशु शल्य चिकित्सालय के पद पशु शल्य चिकित्सक का प्रभार ग्रहण किया है।यह नियम के सिर्फ विरुद्ध ही नहीं है बल्कि निहायत अपमानजनक है।

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ के पदाधिकारीनिरंतर उपेक्षा के शिकार हो रहे हैं.प्रदेश भर केपशु चिकित्सकों में असंतोष छाया हुआ है। झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघने इन परिस्थितियों का जिक्र करते हुए बताया कि  संघ के समक्ष अपने वैधानिक हितों की रक्षा के लिए आन्दोलन करने की परिस्थितियां पैदा हो गई है और सभी पशु चिकित्सकसकते में है। संघ ने यह भी कहा कि पशुचिकित्सकों के समक्ष अब कोई दूसरा विकल्प शेष नहीं है और अगली रणनीति के रूप में संघ सदस्यों से आन्दोलन करने की तैयारी में है। 
 आन्दोलन के कार्यक्रम की रुपरेखा निम्न प्रकार है।

संघ ने बताया कियह आंदोलन 02 जुलाई 20 से 04 जुलाई 20 तक काला फीता/बिल्ला लगा कर कार्यालय में कार्य सम्पादन करेंगे।इसी बीच, कार्यकारिणी और कठोर कदम उठाने पर सदस्यों के साथ विमर्श भी करती रहेगी।अपने जिलों में पूरे आन्दोलन का स्थानीय समाचार पत्रों में दैनिक। प्रकाशन की व्यवस्था करेंगे। सदस्य गण आन्दोलन कार्यक्रम का फोटो/ सेल्फी (विवरण के साथ) संघ की आधिकारिक व्हाट्सएप ग्रुप जेबीएसए-1 /जेबीएसए-2 में  अधिकतम संख्या में रोजाना पोस्ट करेंगे।


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Saturday 20 June 2020

झारखंड राज्य में सरकार स्तर से पशुपालन सेवा संवर्ग के पदाधिकारियों के लिए अराजपत्रित पदाधिकारी को राजपत्रित पदाधिकारियों के वेतन देने का आदेश दिया - राजपत्रित पशुपालन पदाधिकारियों ने इसे गैर कानूनी बताया

झारखंड राज्य में सरकार स्तर से पशुपालन सेवा संवर्ग के  पदाधिकारियों के लिए अराजपत्रित पदाधिकारी को  राजपत्रित पदाधिकारियों के  वेतन देने का आदेश दिया - 
राजपत्रित पशुपालन पदाधिकारियों  ने इसे  गैर कानूनी बताया - 
सरकार अगर तत्काल इस आदेश को रद्द नहीं करता है  तो संघ  आंदोलनात्मक रवैया अपनाने को मजबूर होगा:झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ 


रांची (झारखंड)

उपायुक्त पलामू ने पशुपालन विभाग अंतर्गत क्षेत्रीय निदेशक पशुपालन,पलामू,जिला पशुपालन पदाधिकारी पलामू, पशु शल्य चिकित्सक,पलामू,आदर्श ग्राम पदाधिकारी, पलामू के कार्यलयों में पदस्थापित पशु चिकित्सा पदाधिकारी सहित अन्य विभागीय कर्मियों के वेतनादि निकासी के लिए गैर संवर्गीय को पशुपालन सेवा संवर्ग के राजपत्रित कैडर पदों के पदाधिकारियों के वेतनादि निकासी का अवैधानिक आदेश ज्ञापांक 291, दि०- 16/06/2020 निर्गत किया है।पशु चिकित्सा पदाधिकारियों का इंट्री स्केल 9300- 34800, ग्रेड पे-5400 है, जबकि मत्स्य सेवा के पदाधिकारियों का इंट्री स्केल 9300- 34800, ग्रेड पे-4800 है।झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने जारी अपनी एक प्रेस विज्ञप्ति में बताया है कि यह आदेश सेवा नियमों के विरुद्ध है। 

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ के अध्यक्ष ने इस आदेश पर अपनी कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा है कि उपायुक्त पलामू द्वारा उच्चतर वेतनमान के पदाधिकारियों के वेतनादि की निकासी उनसे निम्न वेतनमान के पदाधिकारी द्वारा कराने का आदेश दिया है, यह राजपत्रित पशुपालन कैडर के सम्मान के विरुद्ध है।इस आदेश को वापस लेना चाहिए और अगर वापस नहीं लिया जाता है तो राजपत्रित अधिकारियों में इसका असंतोष फैलेगा और समूचे प्रदेश मेंपशुपालन के कार्यों पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा।उन्होंने आगे यह भी कहा किइस तरह के निर्णयप्रदेश के हित में नहीं हैक्योंकि वर्तमान में जहां प्रदेशकोविड-19 के लॉक डाउन की वजह से तमाम आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है। वहीं पर पशुपालन जैसी रोजगार परक व्यवस्था के ऐसे निर्णयनई समस्या का जन्म देंगे। 

विज्ञप्ति में आ गए यह भी बताया गया है कि योजना-सह-वित्त विभाग, झारखंड सरकार के पत्रांक वित्त- 20/को०संहिता-07/2016  1111/वि०, दि० 08-04-16 की कंडिका 1 में अंकित है कि "विभागीय प्रधान या विभागाध्यक्ष अधीनस्थ किसी पदाधिकारी को झारखंड कोषागार संहिता -2016 के नियम 87 के तहत् निकासी.एवं व्ययन.पदाधिकारी की शक्ति प्रत्यायोजित कर सकते हैं।झारखंड सेवा संहिता के नियम 21 के आलोक में निदेशक पशुपालन को विभागाध्यक्ष घोषित किया गया है, इसी प्रदत्त शक्ति का प्रयोग कर निदेशक पशुपालन विभाग के पदाधिकारियों एवं कर्मियों के वेतनादि मद की राशि का आवंटनादेश निर्गत करते हैं  एवं पूर्व  में निदेशक द्वारा वित्तीय शक्ति प्रत्यायोजित की गई है।

पशु चिकित्सा सेवा संघ का मानना है कि कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग, झारखंड सरकार का पत्र संख्या -1स्था० अतिरिक्त प्रभार 01/2017 प०पा०/431, दि०- 02-06-2020 द्वारा पशुपालन कैडर के विभिन्न जिलों के रिक्त निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी के पदों के प्रभार हेतू अधिकृत किया जाना, योजना-सह-वित्त विभाग, झारखंड सरकार के पत्रांक वित्त- 20/को०संहिता-07/2016  1111/वि०, दि० 08-04-16 की मूल अवधारणा के विपरीत है।सरकारी कर्मी की सेवानिवृत्ति सुनिश्चित है, जिसका सारा ब्योरा सरकार के पास संधारित होता है, फिर भी विभागीय सचिवालय 7 महीने से भी अधिक अवधि व्यतीत हो जाने पर निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों के सेवानिवृत्ति उपरान्त प्रतिस्थानी पदाघिकारी की पदस्थापना में किस मंशा से विलंब करता है, स्पष्ट है।

संघ के अध्यक्ष के अनुसार "प्रोन्नति के पदों के रिक्त रहने एवं कालावधि शिथिलन के नियम के बावजूद प्रोन्नति प्रदान करने में विलंब किया जाता है, वर्ष 2002 को तत्कालीन मुख्य सचिव की अध्यक्षता में पदवर्ग समीति की बैठक में लिए गये सयुक्त निदेशक स्तर के तीन पदों, उप निदेशक स्तर के दो पदों की स्वीकृति के  निर्णय पर अब तक पदस्थापन नहीं किया जाना, संदेह पैदा करता है, कि पशुपालन कैडर को क्षीण-भीन्न करने की साजिश तो नहीं है। संघ दोषियों पर कड़ी कारवाई की माँग करता है।पशुपालन विभाग पशुओं की चिकित्सा एवं उनके कल्याण से संबंधित विभाग है, जिसमें पशु चिकित्सक 5 वर्ष की अनिवार्य पशु चिकित्सा विज्ञान एव़ पशुपालन की स्नातक डिग्री हासिल करते हैं, उन्हें ही सरकार पदस्थापित करती है।" 

विज्ञप्ति में आगे अभी लिखा गया है कि पशु  चिकित्सा एक तकनीकी विषय है एवं पशु औषधियों के साथ ही साथ पशुओं से संबंधित कई प्रकार की वैधानिक शक्तियों का उपयोग पशु चिकित्सा परिषद (वेटरनरी काउंसिल ऑफ इंडिया अथवा वेटरनरी काउंसिल ऑफ स्टेट) से रजिस्टर्ड पशु चिकित्सक ही कर सकते हैं। इंडियन वेटरनरी काउंसिल एक्ट 1984 के अध्याय 4 धारा 30 के तहत् पशु चिकित्सक को विशेष अधिकार प्राप्त हैं,उपायुक्त पलामू ने इस नियम का उल्लंघन करते हुए क्षेत्रीय निदेशक पशुपालन,पलामू,जिला पशुपालन पदाधिकारी पलामू, पशुशलय चिकित्सक,पलामू,आदर्श ग्राम पदाधिकारी पलामू के पद पर जिला मत्स्य पदाधिकारी को  प्रभार दिया गया है। पूर्व मे भी उपायुक्त रांची द्वारा जिला कृषि पदाधिकारी को जिला पशुपालन पदाधिकारी का प्रभार दिया गया था संघ के विरोध दर्ज करने पर तत्काल रद्द किया गया था।

झारखंड सरकार पशु चिकित्सकों को न तो समय पर प्रमोशन दे रही है नहीं एमएससीपी का लाभ साथ ही साथ रिक्त पड़े पदों पर मनमाने तरीके से पोस्टिंग किया जा रहा है। इस तरह से विभाग की क्षति के साथ साथ पशुचिकित्सकों के मनोबल को कुंठित करना है।इस तरह के हतोत्साहित करने वाले कृत्य से राज्य के किसानों के आर्थिक आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में सरकार की ओर से घोर उदासीनता को दिखाता है।रूल ऑफ़ लॉ को दरकिनार करते हुए मैनेजमेंट की अक्षमता को भी दर्शाया जा रहा है ।ऐसा प्रतीत होता है कि एक अतिमहत्वपूर्ण तकनीकी विभाग को जानबूझकर समाप्त किया जा रहा है ।झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ,  उपायुक्त महोदय, पलामू के इस विसंगतिपूर्ण आदेश का घोर विरोध करता है।सरकार अगर तत्काल इस आदेश को रद्द नहीं करता है , तो संघ  आंदोलनात्मक रवैया अपनाने को मजबूर होगा।

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