ANIMAL WELFARE

Friday 19 June 2020

पशुओं में भी हमें हमेशा ही मानवता की झलक देखने को मिल जाती है जो कि इंसानों के वश की बात नहीं रही...



प्रस्तुत आलेख में  रचनाकार ने  
मनुष्य और पशु के संबंधों के मर्म को समझाने का अभिनव प्रयास किया है।  
लेख में  चमड़ा उद्योग  के पीछे छुपे हुए  तमाम कारनामों को लोग नहीं जानते हैं  कि प्राप्त होने वाला
चमड़ा जिसे हम प्रयोग करते हैं उसकी उत्पत्ति कितनी पीड़ादाई है। उसे प्राप्त करने के लिए पशुओं के ऊपर कितनी क्रूरता,प्रताड़ना और  जघन्य अपराध किए जाते हैं। यहां स्मरण करना जरूरी है कि 2010 के दशक  में जब सरकार  पशुओं के क्रूरता की बात पर सरकार विशेष ध्यान नहीं दे रही थी  तो देश के कई संस्थाओं ने मिलकर के  तत्कालीन प्रधानमंत्री  को चमड़ा उद्योग के काले कारनामे  और उसकी गणित को समझाया। सरकार तुरंत मामले को संज्ञान में लेते हुए  पहली बार देश के प्रधानमंत्री ने सभी प्रदेशों को पत्र लिखकर  चमड़े से जुड़ी हुई  वारदातों को रोकने की बात कही। पशुओं के अपराध से  जुड़े मामले में  चमड़ा उद्योग  कहीं न कहीं  पशु अपराध  के दुनिया से काफी हद तक ताल्लुक रखता है। इस विषय में एनिमल केयर टाइम्स की एसोसिएट एडिटर , चंद्रिका योलमो लामा  आजकल बड़े ही शांतिपूर्ण  ढंग से चमड़े की वस्तुओं प्रयोग में न  लाने की एक मुहिम छेड़ी है जो अत्यंत प्रशंसनीय है। इसी श्रृंखला में इस मुहिम के मूल उद्देश्यों को  अत्यंत प्रतिभाशाली युवा शिक्षिका एवं  सामाजिक कार्यकर्ता  वंदना वर्मा ने बड़े बखूबी से  अपने सृजनशील लेखनी से  चमड़ा उद्योग के भीतर छुपे हुए बेजुबान पशुओं के पीड़ा को बताने की कोशिश की है। प्रस्तुत है वंदना वर्मा की  विचारोत्तेजक आलेख  जो एक तरफ  पशु प्रेम के गहराई को बयां करता है तो दूसरी तरफ  चमड़ा उद्योग के असहनीय पीड़ा और क्रूरता कोएहसाकरानका कोशिश भी...  -संपादक  

आलेख : वन्दना  वर्मा  

               
आज हमारे देश में, हमारे समाज में हर जगह प्रतिपल कुछ ऐसी हृदय विदारक घटनाएं घटित हो रही हैं जिनको देखते हुए मैं स्वयं को लिखने से रोक नहीं पा रही हूँ ।अरे भाई हम तो इंसान हैं और इंसानों को ईश्वर ने हर प्रकार से श्रेष्ठ बनाया है, पूरी पृथ्वी पर इंसान ही है जिसे सोचने, समझने, तर्क-वितर्क करने जैसी सारी स्वतन्त्रता ईश्वर ने प्रदान की है जो कि हमें बाकी जीवों से भिन्न बनाती है। इसी भिन्नता के कारण ही हम इंसान कहलाते हैं किन्तु मैंने बचपन में एक श्लोक पढ़ा था -

येषां न विद्या न तपो न दानम् न शीलं न गुणो न धर्म:।
ये मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्य रूपेण मृगाश्चरन्ति।।

अर्थात् - जिन मनुष्यों के पास विद्या, तप, दान की भावना, ज्ञान, शील(सत्स्वभाव) मानवीय गुण, धर्म में संलग्नता का अभाव हो वे इस मरणशील संसार में धरती पर बोझ बने हुए इंसानों के रूप में विचरण कर रहे हैं। मैं सिर्फ़ यह कहना चाहती हूं कि इंसानों को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना माना जाता रहा है और जिस इंसान में दान, दया, क्षमा जैसा कोई भी गुण न हो उसे बिना पूंछ वाले पशु की संज्ञा दी जाती रही है पर आज के मानव को तो इन शब्दों का मतलब तक नहीं पता। अगर सच कहूं तो ऐसे इंसानों को पशु तक कहना पशुओं का अपमान करना होगा।

पशुओं में भी हमें हमेशा ही मानवता की झलक देखने को मिल  जाती है जो कि इंसानों के वश की बात नहीं रही।अब हाल ही की केरल की घटना को देखिए कि हाथी और उसके पेट में पल रहे बच्चे के साथ वहां के स्थानीय लोगों ने कितना गलत किया फिर भी उस हाथी ने पलट कर कोई उत्पात नहीं मचाया,किसी को भी किसी प्रकार की क्षति नहीं पहुंचाई किन्तु हम इंसान अच्छे में, बुरे में सिर्फ बदला लेने की व अपने फायदे तथा दूसरे के नुक़सान के बारे में सोचते रहते हैं।

किंतु ,आज मैं बात कर रही हूं चमड़े के उपयोग को रोकने के बारे में अर्थात् मैं "नो लेदर कैंपेन" के जरिए आप तक अपनी आवाज़ पहुंचाना चाहती हूं। आप सबका ध्यान इस ओर इंगित करवाना चाहती हूं कि जो चमड़े की वस्तुएं आप सबको बहुत भाती हैं बैग, जूते, बेल्ट, जैकेट, सजावट एवं अन्य बहुत सारी वस्तुएं। पर क्या हम सबने कभी भी सोचा कि ये सब जो हमें इतना पसंद आ रहा है उसको बनाने के लिए हम कितने ही बेजुबान जानवरों की बलि चढ़ा देते हैं चाहे वह शेर, चीता हो या फिर सांप मतलब बड़ा या छोटा कोई भी जानवर हो वह हमारी लालसाओं की पूर्ति के लिए अपनी जान से हाथ धो देता है।

हमें थोड़ी सी भी ग्लानि नहीं होती है कि हम आखिर प्रकृति के साथ पशुओं के साथ कर करते आ रहे हैं ? तो मेरी
आप सभी इंसानों से प्रार्थना है कि अब तो जागिए इंसानियत के पथ पर अग्रसर हो जाइए। वैसे भी हम इंसान प्रकृति का बहुत नुकसान कर चुके हैं और मत करिए नहीं तो हम मनुष्य जाति को हमारे कर्मों का दण्ड मिलना निश्चित है।साथ ही आप सबसे यही प्रार्थना करना चाहती हूं कि चमड़े की कोई भी वस्तु उपयोग में ना लायें क्योंकि अगर हम चमड़े से बनी वस्तुओं का प्रयोग ही बन्द कर देंगे तो वस्तुएं ‌बननी भी बन्द हो जायेंगी और इस तरह हम पशु-पक्षियों की मदद कर पायेंगे और उनके जान की रक्षा भी कर पायेंगे।

साथ ही हमारे आस-पास यदि कोई भी पशु या पक्षी जिसको खाने की, इलाज की जरूरत हो तो उनकी मदद करें। अगर आप इतना नहीं कर सकते तो पास के ही किसी "स्वयं सेवक संघ" में फोन करके  स्थिति की जानकारी दे सकते हैं ऐसा करके आप एक अच्छे कार्य के साथ ही अपने इंसान होने को प्रमाणित भी कर पायेंगे।
(संकलन  : चंद्रिका योलमो लामा, एसोसिएट एडिटर- एनिमल केयर टाइम्स)

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