ANIMAL WELFARE

Saturday 4 July 2020

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ के तीसरे दिन का आंदोलन उग्र रूप में-कल निर्धारित होगी संघर्ष की अगली रणनीति





रांची (झारखंड) ;04 जुलाई, 2020 

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ  प्रदेश के पशु चिकित्सकों के भविष्य को लेकर अत्यंत चिंतित है कि राज्य सरकार सेवा नियमावली को दरकिनार कर सेवा शर्तों के विरुद्ध कार्य कर रही है। जिसका नतीजा है कि प्रदेश भर के पशुचिकित्सक अपने भविष्य को लेकर के अत्यंत चिंतित है। पिछले कई महीनों से लगातार सरकार से अनुरोध करते आ रहे हैं लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है और न नियम विरूद्ध सरकार कार्य कर रहा है। झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ के अनुसार  पशुपालन विभाग में पदाधिकारियों के सेवा निवृति उपरांत निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों के पद 7 महीनों से अधिक समय से रिक्त चल रहे है। जिसके चलते कुछ जिलों  के कार्यालयों की स्थापना के अन्तर्गत आने वाले पदाधिकारियों एवं कर्मचारियों की वेतन निकासी बाधित हो गई है। सरकार/विभाग स्तर से की गई तात्कालिक व्यवस्था नियम विरुद्ध है, उपर से जिला प्रशासन के मनमानी के कई उदाहरण सामने आए हैं। 

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से यह बताया गया है कि झारखंड राज्य को छोड़ कर के शायद कोई राज्य होगा जहां पर पशु चिकित्सकों की सेवाओं का बेहतर उपयोग नहीं हो रहा और सेवा नियमावली के अनुसार अधिकारियों को समुचित सुविधा देने में कोताही बरती जा रही होगी। संघ का कहना है कि पशुपालन विभाग के विभागाध्यक्ष पशुपालन निदेशक होते है जिनके स्तर से पूरे राज्य में विभाग के कर्मचारियों एवं पदाधिकारियों के वेतन सहित सभी योजनाओं का आवंटनादेश निर्गत किया जाता है। साथ ही निदेशक स्तर से रिक्त पदोें पर पदस्थापना न हो पाने की स्थिति में निकासी एवं व्ययन का विभागीय शक्ति जिला के सक्षम एवं योग्य वरीय पदाधिकारी को प्रत्यायोजन किया जाना चाहिए था जो नहीं हो रहा है।इस संबंध में संघ द्वारा अनेक पत्र एवं स्मार देने के बाद भी अभी तक कोई सुनवाई नहीं हुई है।

संघ का कहना है कि कृषि पशुपालन एवं सहकारिता विभाग के संयुक्त निदेशक-सह-संयुक्त सचिव ने प्रभावित जिलो में रिक्त पदों पर वेतनादि की निकासी करने के लिए जिला उपायुक्त को अपने स्तर से कार्रवाई करने का अप्रत्याशित पत्र प्रेषित किया गया है। जिसमे उपायुक्तो को अपने स्तर से वेतनादि की निकासी हेतु विभागीय शक्ति सक्षम पदाधिकारी को प्रत्यायोजित किया जाने का निदेश दिया गया है।इसी संदर्भ में उपायुक्त महोदय, पलामु द्वारा गैर संवर्गीय जिला मत्स्य पदाधिकारी को पशुपालन विभाग के जिला एवं प्रमण्डल स्तरीय पदों के लिए निकासी एवं व्ययन का वित्तीय शक्ति प्रत्यायोजित किया है, जो वैधानिक रुप से नियम विरुद्ध है। अंततः इन्हीं सारे मामलों को लेकर के झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ  मजबूर होकर के आंदोलन करने के लिए उतारू हुआ है।

विज्ञप्ति में एतराज करते हुए कहा गया है कि जिला मत्स्य पदाधिकारी का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड - पे 4800 है, जबकि पशुपालन पदाधिकारियों का मूल कोटि स्तर का वेतनमान 9300-34800, ग्रेड पे 5400 है। उपायुक्त पलामु द्वारा उच्चतर वेतनमान के पदाधिकारी के वेतनादि की निकासी हेतु निम्न वेतनमान के पदाधिकारी को विभागीय शक्ति प्रत्यायोजित किया जाना नियमानुकूल नही है। ठीक उसी तरह क्षेत्रीय निदेशक पशुपालन का पद प्रमण्डल स्तर का है और उपायुक्त स्तर से आदेश निर्गत करना उनकी अधिकारिता की सीमा से परे है तथा प्रख्यातित नियमो के पूर्णतः प्रतिकूल है। यह पशुपालन सेवा संवर्ग के लिए अपमान जनक है यह पशुपालन कैडर के पदाधिकारियों के मनोबल को गिराता है।

यह बता दें कि झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ का प्रदर्शन पर उतरने का मुख्य कारण यह भी है कि उपायुक्त द्वारा पशुपालन विभाग के स्थापना/कार्यालय का निकासी एवं व्ययन का आदेश अराजपत्रित पदाधिकारी को देना विभागीय अराजकता के साथ-साथ गलत परम्परा को मान्यता देना हैै। पशुपालन विभाग के पदो पर भारतीय पशुचिकित्सा परिषद/झारखण्ड पशुचिकित्सा परिषद में निबंधित पशुचिकित्सा पदाधिकारी का होना अनिवार्य है। उपायुक्त महोदय, पलामु ने भारतीय पशुचिकित्सा परिषद की अधिनियम 1984 के अध्याय 04 के नियम 30 का सीधा उलंधन किया है, तथा संवैधानिक संकट खडा कर दिया है।

संघ का मानना है कि एक अति महत्वपूर्ण तकनीकि विभाग को जानबुझ कर पंगु  बनाने का प्रयास किया जा रहा है। राज्य स्तरीय झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने इन वैधानिक विसंगतियों की त्रुटि को शीघ्र दूर करने का सरकार से लगातार अनुरोध किया है, परन्तु सरकार स्तर से अब तक सार्थक प्रयास परिणत नहीं हुआ है। इन्ही विसंगतियों के विरुद्ध झारखण्ड पशु चिकित्सा सेवा संघ की केन्द्रीय कमेटी ने विरोध स्वरुप  02 जुलाई 2020 से 04 जुलाई 2020 तक तीन दिनों का काला बिल्ला लगा कर अहिसात्मक एवं सांकेतिक विरोध का निर्णय लिया है। जिसके फलस्वरुप जिला ईकाई के सभी सदस्य (पशुपालन सेवा संवर्ग के पदाधिकारी) तीन दिनों तक काला बिल्ला लगाकर अपना विरोध प्रकट कर रहें है, ताकि सरकार स्तर से पशुपालन कैडर की अनदेखी न की जाए।

झारखण्ड पशुचिकित्सा सेवा संघ अध्यक्ष ने बताया कि आज विरोध का तीसरा और अंतिम दिन है। राज्य एवं जिला के सभी पशु चिकित्सा पदाधिकारियों दवारा बढ़ चढ़ कर विरोध दर्ज किया गया और यह सेवा नियमावली के तहत अपने अधिकार को प्राप्त करने की दिशा मे सार्थक पहल है। राज्य सरकार द्वारा पशु चिकित्सा पदाधिकारियों के नियमानुसार  सेवा संबंधी मौलिक अधिकारों के खिलाफ कुछ भी होता है तो उसका विरोध किया जाएगा। उन्होंने बताया कि आज तीसरे दिन भी पूरे प्रदेश के पदाधिकारियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया,खास करके  हजारीबाग, खूँटी, पलामू, पाकुड़, दुमका, साहेबगंज जमशेदपुर इत्यादि जिलों में पदाधिकारियों ने काला बिल्ला लगाकर मासिक बैठक में भाग लिया और अपना ऐतराज़ प्रकट किया।

कल दिनांक 05/07/20 रविवार को कार्यकारणी की आपात बैढ़क प्रांतिकृत पशु चिकित्सालय, चुटिया परिसर में पूर्वाह्न 11 बजे रखी गई है, जिसम़े आगे की रणनीति तय की जाएगी।


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हिमांचल प्रदेश में कब शुरू होगा गोधन योजना - जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारियों ने योजना लागू करने की मांग की


मंडी (हिमाचल) प्रदेश 4 जुलाई 2020 : एडब्ल्यू ब्यूरो

भारतीय जीव जंतु कल्याण बोर्ड से मनोनीत जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारी एवं राष्ट्रीय अवार्ड से सम्मानित,
मदनलाल पटियाल  एवं  जिला जीव जंतु कल्याण अधिकारी  सीताराम वर्मा ने हिमाचल प्रदेश सरकार से मांग की है कि छत्तीसगढ़ सरकार की तरह प्रदेश में गोधन न्याय योजना शुरू की जाए ताकि प्रदेश सरकार किसानों से वर्गो सदनों गौशालाओं से गोबर खरीद कर किसानों की आमदनी को बढ़ाया जा सके।  इस मुहिम के संचालक पटियाल ने बताया कि  गोबर गोमूत्र  इस समय बड़े लाभ का सौदा है।  पूरे देश भर में  गोबर गोमूत्र से लाभ कमाने के  लिए नई-नई आजमाइश की जा रही है।  इस लिए छत्तीसगढ़ राज्य जैसा प्रयास हिमाचल प्रदेश सरकार के द्वारा  भी किया जाना चाहिए। 

पटियाल पिछले तकरीबन 2 दशकों से  भारत सरकार के जीव जंतु कल्याण बोर्ड से अधिकारी के रूप में कार्य कर रहे हैं।  उनके उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए सरकार ने  पशु पक्षियों पर होने वाले अनुसंधान  एवं परीक्षण  की देखभाल के लिए बनाई गई समिति-सीपीसीएसईए का भी जिम्मेदारी  उन्हें सौंपा हुआ है। पटियाल हिमाचल प्रदेश के महत्वपूर्ण पशुओं पर परीक्षण होने वाले  संस्थानों की  जांच कमेटी  के सदस्य की भी भूमिका  कई साल से निभा रहे हैं।  पटियाल ने हिमाचल सरकार से आग्रह किया है कि  यदि छत्तीसगढ़ राज्य जैसी व्यवस्था प्रदेश में कर दी जाए तो किसानों को  और पशु सेवकों को बहुत बड़ा लाभ होगा।  कोई भी पशु छुट्टा सड़क पर दिखाई नहीं देगा और न ही कत्लखाने जाएगा। 

उन्होंने बताया कि गोबर गोमूत्र एक ऐसी  प्राकृतिक उपाय है कि जिसमें भूमि को पोषित करने वाले सभी आवश्यक तत्व मौजूद होते है। गोबर गोमूत्र के बगैर  आज खेती-बाड़ी करना मुश्किल है इसके बिना न ही  स्वस्थ, सुरक्षित एवं पोस्टिक खाद्यान्न, फल फूल या सब्जी  पैदा  किया जा सकता है और न  ही आमदनी  पाई जा सकती।  यही कारण है कि केंद्र सरकार  जीरो बजट की खेती - ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा दे रही है।  ऑर्गेनिक खेती का सिद्धांत आज के परिपेक्ष में   सबसे  बेहतरीन खेती का माध्यम है  जबकि रासायनिक  उर्वरकों का प्रयोग न केवल   किसानों को हताश निराश  बनाने वाली है।  इस प्रकार गोबर की खाद किसान को  बढ़िया आमदनी देने वाला बहुत बड़ा साधन है। क्योंकि, यह  पर्यावरण और धरती के लिए भी सुरक्षा का सस्ता  संरक्षण का उपाय है।  उन्होंने कहा कि  ऐसे कार्यों को देश के सभी  रासायनिक उर्वरक  एवं कीटनाशक  उत्पादन करने वाली प्राइवेट  कंपनियां  धीरे धीरे  ऑर्गेनिक खाद का उत्पादन कर किसानों को मुहैया कराना चाहिए। 

छत्तीसगढ़ सरकार को आभार प्रकट करते हुए  उन्होंने बताया कि  गोबर की खरीदारी से  कत्लखाने जाने वाले पशुओं को बचाया जा सकेगा।  अगर ऐसा  हिमाचल प्रदेश में सरकार का निर्णय होता है तो सड़क पर कोई पशु दिखाई नहीं देगा  लोगों में मवेशियों के पालने की होड़ लग जाएगी।  इस तरह के जब भी उन्नत किस्म के  तौर तरीके  प्रकाश में आते हैं  तो सरकार की सबसे पहली जिम्मेदारी है होनी चाहिए कि  इस तरह की अनुपम योजनाओं को संचालित करने के लिए  बेहतरीन योजना बनाएं  और अनुशासनात्मक ढंग से उसका संचालन करें तभी सफलता हाथ लगेगी।  उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ने अपने प्रदेश के किसानों को आश्वासन दिया है कि  प्रदेश भर के सभी किसानों की भागीदारी  निश्चित ही नहीं करेंगे बल्कि  सभी को लाभ प्रदान दिला कर दिखाएंगे। 
पटियाल ने बताया कि आज स्थिति यह हो गई है कि  गांव में कोई किसान  अब दुधारू पशु पालना नहीं चाहता है।  यही कारण है कि किसानों की जगह आज बड़ी बड़ी डेरिया उनका स्थान ले ली है जहां पर न  तो पशुओं का सम्मान होता है और न  ही  उनसे मिलने वाले  उत्पाद की गुणवत्ता पर ध्यान दिया जाता है।  डेयरी फार्म का हमेशा यही इरादा होता है कि ज्यादा से ज्यादा  पशु उत्पादन और उसकी आमदनी उसे प्राप्त हो।  इसी का नतीजा है कि  पूरी दुनिया में  जानवर पर होने वाले अत्याचार  तथा अपराध  बढ़ते जा रहे हैं।  इंसान नित नए-नए खतरों से घिरता जा रहा है।  उन्होंने कहा कि अब अवसर आ गया है कि  पशुओं पर किए जाने वाले किसी प्रकार के अपराध और अत्याचार  रोका जाए क्योंकि इससे इंसान को सिवाय नुकसान होने के  फायदा नहीं हो सकता। नहीं तो करोना वायरस जैसी विपत्तियां आती रहेंगी  और मानव का सफाया कर के चली जाएंगी।  इसलिए बेहतर है कि हम प्रकृति की इज्जत करें  और प्रकृति हमारी इज्जत करें। 

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